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चित्रकला

बालू पर जान-बूझकर कुछ रचना अपने पद-चिह्नों से करता है तो यह कला कहलायेगी और यह कला अच्छी भी हो सकती है। इसलिए मनुष्य ने चेतन स्थितियों की रचना कोही प्रधानता दी है।

चेतन रचनाएँ भी दो प्रकार की हैं――एक रचना वह है जो भौतिक सुख के लिए होती है और दूसरी वह जो आत्मिक सुख के लिए होती है। जैसे खेती करना भौतिक सुख के लिए है और माली का सुन्दर उपवन लगाना आत्मिक आनन्द के लिए है। भिक्षा माँगनेवाली नर्तकी का नृत्य भौतिक सुख के लिए होता है, पर आत्मा के आनन्द के लिए भी नर्तकी नृत्य करती है। भौतिक कामों में आनेवाली रचना में अधिक अभ्यास तथा कल्पना नहीं रहती, पर आत्मिक आनन्द प्राप्त करने के लिए अभ्यास तथा कल्पना की और भी आवश्यकता पड़ती है। इसीलिए कुछ कलाओं को निम्न तथा कुछ को उच्च स्थान मिला है। जैसे――नृत्य, संगीत, काव्य, चित्रकला आदि उत्कृष्ट कलाएँ मानी जाती है।

चित्रकला एक आत्मरञ्जन की वस्तु मानी जाती है। इसमें भी मनुष्य की चेतनकला का सबसे बड़ा स्थान है। ऐसे तो किसी भित्ति पर कुछ भी खींच दिया जाय कला है और कोई चित्रकार कुछ भी खींच ले, कलाकार कहला सकता है। पर सबसे महान् कला तथा सबसे महान् कलाकार की परख उसकी कल्पना-शक्ति में है। चित्रकला रचना करने का एक माध्यम है । कला की शाला में किसी भी विद्यार्थी को चित्र-निर्माण की शिक्षा दी जा सकती है, पर किसी को कल्पना करना नहीं सिखाया जा सकता। यह एक देन होती है जो किसी में अधिक तथा किसी में कम होती है। ईश्वर एक महान् कल्पना का स्रोत माना गया है, इसीलिए उसकी रचना प्रकृति भी महान् है।

चित्रकला-साधना प्रारम्भ में प्राकृतिक वस्तुओं के अनुकरण से की जाती है। उससे भी उत्कृष्ट रचना प्रकृति को अपनी कल्पना के अनुसार चित्रित करके की जा सकती है, पर सर्वोत्कृष्ट रचना तो वह है जिसमें प्रकृति के परे की कल्पना को चित्रित किया जाता है। ईश्वर ने प्रकृति की जो कल्पना की है वह उसकी अपनी कल्पना है, किसी का अनुकरण नहीं। मनुष्य भी ईश्वर बनने का प्रयास करता है और इसीलिए चित्रकार भी अपनी कल्पना को ही प्रधानता दे देता है और उसी को चित्रित करना चाहता है। अतः वे कलाकार सर्वोत्तम होंगे जिनकी कल्पना अपनी होगी और प्रकृति से परे होगी। चित्रकार जब अपने रंग और तूलिका से अपनी कल्पना को किसी भित्ति, कागज अथवा कण्टान पर उतारता है तो वह चित्र कहलाता है। चित्र बनाने के अनेकों माध्यम हैं और हो सकते हैं, जैसे-कोयला, खड़िया, मिट्टी, पेंसिल, जल-रंग, तेल-रंग इत्यादि।