उससे लाभ उठाये। वह दूसरों के अनुभवों को ग्रहण करता है और उन्हीं अनुभवों को अपने अनुभव की नींव बनाता है। इस प्रकार अनुभव की मंजिल ऊपर ऊठती चली जाती है। यही है समाज की उन्नति का ढंग।
इस प्रकार समाज का यह नियम है कि प्रत्येक मनुष्य पहले समाज के अनुभवों को ग्रहण करता है, फिर उन्हीं के सहारे वह स्वयं अनुभव करता है और अन्त में समाज की उन्नति के लिए वह अपने अनुभवों को समाज को दान करता है। संसार में रहनेवाले हर व्यक्ति के लिए ये तीन बातें नितान्त आवश्यक हैं, चाहे वह योद्धा हो, पण्डित हो, व्यवसायी हो या मजदूर हो। चित्रकार भी इन्हीं में से एक है। उसको भी इन तीन नियमों का पालन करना आवश्यक है।
चित्रकार भी पहले समाज के अनुभवों को ग्रहण करता है और अपने अनुभवों को चित्रों में रखता है। चित्र बनने तक उसने समाज के दो नियमों का पालन किया। अब तीसरा नियम समाज को अपने अनुभव का दान करना बाकी रह गया। वह चित्रकार तभी कर सकता है जब अपने चित्रों को समाज के सम्मुख रखे। इसलिए चित्रकार अपने चित्रों का प्रदर्शन करता है, उसके चित्र प्रदर्शनियों में, पत्र-पत्रिकाओं में और अन्य जो भी माध्यम हो सकते हैं, उनके द्वारा वह अपने चित्रों का प्रदर्शन करता है।