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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

चित्रकार को ज्ञात है न उसके दर्शक को। साहित्य में लाल रंग कहने से केवल वर्ण का बोध होता है, पर चित्रकला में लाल केवल वर्ण मात्र ही नहीं है वरन् क्रोध, लोलुपता इत्यादि मनोवेगों तथा उद्वेगों का भी द्योतक है। साहित्य में रेखा केवल रेखा है, पर चित्रकला में विभिन्न प्रकार की रेखाएँ विभिन्न उद्वेगों को व्यक्त करतीं है। यही बात रूप के साथ भी है।

चित्र की भाषा का भली-भाँति अध्ययन करके हम अपने अनुभवों को चित्र द्वारा समाज के सम्मुख रख सकते हैं। मान लीजिए, एक मनुष्य समाज द्वारा सताया गया है तो समाज के प्रति जो उसकी कटु भावनाएँ हैं उन्हीं को वह अपने चित्र में स्थान देगा। इसी प्रकार चित्रकार भी अपना जो अनुभव या अपनी जो भावना समाज के सामने रखता है उसका उत्तरदायित्व समाज पर है और इसलिए समाज को उसका अनुभव स्वीकार करना होता है। व्यक्ति समाज की देन है, वह समाज का एक अंग है और वह जो कुछ भी करता है उसका उत्तरदायित्व समाज पर है। आधुनिक चित्रकार जो कुछ भी कर रहा है, जैसे भी चित्र बना रहा है उसका कारण समाज है, फिर समाज उसकी कला को स्वीकार क्यों नहीं करता? पर नहीं, समाज उसे अंगीकार करने से मुंह मोड़ता है अर्थात् समाज को स्वयं अपने से ही घृणा है। यह है आधुनिक समाज की स्थिति। इस प्रकार तो धीरे-धीरे समाज क्षीण हो जायगा। परन्तु नहीं, व्यक्ति और उसकी कला का ध्येय समाज में तथा व्यक्ति में सामंजस्य लाना है। यदि इसमें वह सफल होता है तो समाज को आगे बढ़ना ही होगा और यही होता है। व्यक्ति अपने में इतनी शक्ति संग्रह करता है कि वह समाज को अकेले खींच ले जाता है। ऐसा ही पुरुष महा-पुरुष कहलाता है। इस प्रकार कला और कलाकार का यह भी धर्म है कि वह समाज को अपनी शक्ति से प्रगति की ओर खींचे, समाज को घृणित तथा कुरूप होने से बचाये।

किसी भी कला के साधारणतया दो दृष्टिकोण हुआ करते हैं--एक तो कला की रचना और दूसरा उसका सामाजिक महत्त्व। कला की रचना का सम्बन्ध कलाकार से है। वह आत्म-अभिव्यक्ति के हेतु रचना करता है, अपनी सहज क्रियात्मक शक्ति के बल पर। रचना के बाद उसकी कृति समाज के सम्मुख आती है और यहाँ समाज की प्रतिक्रिया का कार्य आरम्भ होता है। जितना महत्त्व रचना का है उतना ही इस प्रतिक्रिया का भी है। इस प्रतिक्रिया के बल पर उस रचना का सामाजिक मूल्यांकन होता है, जिसका आधार सामाजिक रुचि है।

आधुनिक कलाकार इस रुचि को न अधिक महत्त्व देता है, न इससे भयभीत होता है। वह केवल अपनी रुचि पर ही निर्भर करता है। किंचित् आधुनिक कलाकार की इस मनो-