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कला-धर्म

धर्म के प्रभाव के बदले आधुनिक संसार में धर्म का प्रभाव अधिक बलवान होता जा रहा है। कहा जा सकता है कि आधुनिक संसार प्रगति की ओर न जाकर अवनति की ओर जा रहा है । परन्तु आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान हमें यही बताता है कि हमारी प्रगति हो रही है। प्राचीन समय में धर्म के ऊपर मनुष्य का जीवन आधारित था, आज जीवन का आधार विज्ञान है। धर्म भी मनुष्य को सुखमय जीवन व्यतीत करने का मार्ग दिखाता था और विज्ञान भी यही प्रयत्न कर रहा है। लक्ष्य एक ही है, केवल मार्ग भिन्न हैं। धर्मों का जब प्रादुर्भाव हुआ था तब भी संसार में केवल एक धर्म नहीं था। विभिन्न प्रकार के धर्म रहे हैं, जैसे-वैदिक धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिक्ख धर्म, मुस्लिम धर्म, पारसी धर्म तथा ईसाई धर्म, इत्यादि। अर्थात् सुखमय जीवन व्यतीत करने के लिए धर्मों के रूप में मनुष्य के सम्मुख अनेक मार्ग रखे गये। इसी प्रकार विज्ञान भी एक मार्ग है और यदि इसे भी एक धर्म कह दिया जाय तो बहुत आपत्तिपूर्ण नहीं है। धर्म और विज्ञान में यदि अन्तर है तो केवल इसका कि एक रहस्य को सत्य मानकर ईश्वरमें अधिक विश्वास करता है और दूसरा रहस्य का उद्घाटन करते हुए सत्य की खोज में लगा है। वैसे तो धर्म में भी सत्य का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है, पर एक सत्य में विश्वास कर चुका है, दूसरा सत्य को खोज रहा है। दोनों ही धर्म मनुष्य के जीवन को सुखी बनाना चाहते हैं, यह तो कोई इनकार नहीं कर सकता। धर्म भी कलाओं का प्रचार चाहता था और विज्ञान भी कला के महत्त्व को मानता है और उसकी सहायता के लिए अपना ज्ञान देना चाहता है।

प्राचीन समय में धर्म मार्ग होते हुए भी लक्ष्य के रूप में था। मनुष्य का लक्ष्य धर्म को प्राप्त करना था। धर्म के लिए ही मनुष्य को प्रत्येक कार्य करना पड़ता था। धर्म का स्थान प्रमुख था। मनुष्य के सारे कार्य तथा शक्तियाँ धर्म की प्राप्ति में सेवक की भाँति थीं। इसी प्रकार कलाएँ भी। कलाओं का भी लक्ष्य धर्मप्राप्ति था। कलाएँ धर्म के लिए थीं। धर्म पहले था, कला बाद में। धर्म के प्रचार में कलाएं रत हुई। सम्पूर्ण प्राचीन भारतीय कला का कार्य धर्म का प्रचार करना रहा, चाहे ब्राह्मण-कला हो, बौद्ध-कला हो या जैनकला।