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कला और आधुनिक प्रवृत्तियां

रचना में गुण कहाँ से आ सकता है? इसलिए कलाकार अपनी साधना से गुणों को अपने में संचित करता है। स्वयं गुणी होकर अपने गुणों का अपनी कला द्वारा प्रकाशन करता है। इसलिए यह सत्य है कि कला की साधना से मनुष्य अपने में गुणों को एकत्र करता है, उसका मानसिक विकास होता है, उसका व्यक्तित्व निखरता है।

पिछले युगों में दर्शन तथा विज्ञान का अति विकास हुआ। दर्शन-युग तथा धर्मयुग के बाद वैज्ञानिक युग का प्रादुर्भाव हुआ। इस युग के बाद यह आधुनिक युग मनोविज्ञान का युग कहा जाता है। मानसिक विकास की ये सीढ़ियाँ कही जा सकती हैं । मनुष्य के मस्तिष्क का विकास तीन दिशाओं में होता है--१. दर्शन का आधार, विचार तथा कल्पना है, २. विज्ञान तथा मनोविज्ञान का आधार, अनुभव या प्रयोग है, ३. कला इन दोनों को आधार मानकर उसके ऊपर कार्य करती है, रचना करती है जिसका आधार रचनात्मक बुद्धि है। इस प्रकार कला का कार्य करके मनुष्य सभी दिशाओं में अपने मस्तिष्क का विकास कर सकता है। आज हमें कोरे दार्शनिक ज्ञान तथा विज्ञान के अनुभव ज्ञान की ही आवश्यकता नहीं है बल्कि उसके आगे जो रचनात्मक ज्ञान है जिसके लिए विज्ञान और दर्शन केवल सहायक मात्र हैं, हमारे भविष्य के लिए अति आवश्यक है। इसीलिए यदि हम भविष्य की कल्पना करते हुए कहें कि अगला युग जो हमारे सम्मुख है, कला युग है तो अनुपयुक्त न होगा। इस प्रकार कला-पथ ग्रहण कर हम अपने मानसिक विकास में वृद्धि कर सकेंगे।