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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

समझने तथा उनका आनन्द लेने के लिए उत्सुक है । इस प्रकार की सूक्ष्म चित्रकला का प्रचार तब तक रहेगा जब तक जन-साधारण पूर्ण रूप से चित्रकला की ओर आकृष्ट नहीं हो जाता ।

सृष्टि का प्रारम्भ विध्वंस तथा प्रलय से हुआ है और क्रमशः सृष्टि में प्रगति होती जाती है । प्रगति अपनी चरम सीमा पर भी पहँचती है । इसी प्रकार संस्कृति का भी विकास होता है । इस बीसवीं शताब्दी में संस्कृति अपनी चरम सीमा पर पहुँचती दीखती है । और यही वह सीमा है, जिसके बाद विध्वंस होता है, प्रलय होता है और इसके पश्चात् फिर सृष्टि होती है । इस बीसवीं शताब्दी में शायद कला भी अपनी चरम सीमा को पहुँचना चाहती है, इसीलिए चित्र में विध्वंस का निर्माण करना आवश्यक हो गया है । पूर्ण रूप से विध्वंम का चित्रण होने के पश्चात् पुनः कला-सृष्टि का प्रारम्भ होगा ।

यह प्रवृत्ति क्रान्तिकारी है और इससे नयी सृष्टि का आरम्भ होता है ।