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आधुनिक चित्रकार की मनोवृत्ति

कार अपनी चित्रकला से जीविकोपार्जन भी नहीं कर पाता, उसे इसके लिए अन्य मार्ग का आश्रय लेना ही पड़ता है । ऐसी स्थिति में वह अपनी चित्रकला के क्षेत्र में पहले से कहीं अधिक मुक्त हो गया है । उसे समाज की चिन्ता नहीं है । वह आज चित्रकला में समाज के कन्धे से कन्धा मिला कर चलना नहीं चाहता, प्रत्युत पूर्ण स्वतंत्र होकर समाज पर शासन करने की इच्छा रखता है और नवनिर्माण की कामना करता है । यही स्वतंत्रता और नव-निर्माण की कल्पना आज की कला का मूल मंत्र है । आज चित्रकार पथगामी नहीं, प्रत्युत पथ-प्रदर्शक बनना चाहता है, यह है उसका मनोविज्ञान ।

नवभारत का स्वतंत्र चित्रकार केवल एक कारीगर की भाँति कार्य नहीं करना चाहता, प्रत्युत सर्वप्रथम वह एक दार्शनिक या मनोवैज्ञानिक की भाँति काम करने का विचार करता है । अपने जीवन-दर्शन को निर्धारित करता है और उसी के अनुसार अपनी साधना का एक लक्ष्य बनाता है । इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक सिद्धान्त निश्चित करके एक अभिनव शैली का आविष्कार करता है । वह केवल परम्परा का सहारा नहीं लेना चाहता, अपितु अपनी बुद्धि, विवेक और अनुसन्धान के बल पर कार्य करना चाहता है । इसीलिए आधुनिक चित्रकला में अनेकों प्रकार के नये-नये रूप सामने आ रहे हैं और यही कारण है कि हमें उन्हें समझने में कठिनाई होती है । ज्यों ही हम एक प्रकार की कला की परिभाषा निश्चित करते हैं त्यों ही उसकी दूसरी परिभाषाएँ बन जाती हैं, जो सर्वथा भिन्न होती हैं । वर्तमान युग का यह एक प्रचलन-सा हो गया है कि कला में प्रत्येक चित्रकार एक नये रूप का अनुसंधान करता है । इस प्रकार के अनेकों रूप यूरोप और वर्तमान भारतीय कला में आविष्कृत होते चले जा रहे हैं । साधारण व्यक्ति को न इतना ज्ञान है, न इतना अवसर है कि इन नये-नये रूपों को समझ सके अथवा उनका आनन्द उठा सकें । उसके लिए आधुनिक चित्रकला एक पहेली-सी बन गयी है ।

परन्तु आधुनिक मनोविज्ञान दिन पर दिन उन्नति की ओर बढ़ रहा है, यहाँ तक कि आज हम उसके द्वारा रोगियों, विक्षिप्तों, वन्दियों आदि के मनोभावों को समझकर उनका उपचार भी करने लगे हैं । तो क्या हम चित्रकारों के मनो-विज्ञान को समझकर उनके चित्रों को नहीं समझ सकते ? आधुनिक चित्रों के समझने का एक ही माध्यम है और वह है उनका मनोविज्ञान ।

वर्तमान चित्रकलागत मनोविज्ञान को समझने के लिए सर्वप्रथम हमें चित्रकार की स्वाभाविक आवश्यकता की पूर्ति पर ध्यान देना चाहिए । प्रत्येक चित्रकार में निर्माण का सहज ज्ञान सबसे अधिक बलवान् होता है । चित्रकला की सफलता सहज ज्ञान पर ही आश्रित है । वैसे तो प्रायः सभी मनुष्यों में यह शक्ति होती है, पर चित्रकार के अन्तःकरण में इसका