उत्पत्ति पर ध्यान दें तो देखेंगे कि जीवन में कला का कार्य सबसे पहले आता है । जीवन को बनाये रखना, सुन्दरतापूर्वक जीवन निर्वाह करना, स्वयं कला का कार्य है और आदिकाल से है । इसी के अन्तर्गत और सभी कलाओं का प्रादुर्भाव हुआ । इसके पश्चात् जब भाषा-कला की उत्पत्ति हुई तो इसके माध्यम से अन्य कलाओं या मनुष्य के कार्यों का ब्यौरा साहित्य के रूप में इकट्ठा होने लगा और आज भी होता जा रहा है । कोई साहित्य तभी महान् होता है जब वह मनुष्य के जीवन के प्रत्येक कार्य पर या कहिए प्रत्येक कला पर साहित्य का निर्माण कर लेता है । साहित्य किसी जाति या देश को ऊपर उठाता है, क्योंकि वह वहाँ के प्राणियों में प्रेरणा भरकर आगे कार्य करने की क्षमता प्रदान करता है और यही साहित्य का सबसे महान कार्य है । ज्यों-ज्यों विभिन्न प्रकार का साहित्य तैयार होता जाता है, देश उन्नति के शिखर पर चढ़ता जाता है । पूर्ण साहित्यकार वही है जो मनुप्य को भली-भाँति समझता है और उसको कला का कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, क्योंकि कला या निर्माण के कार्य पर ही देश या जाति का भविष्य निर्भर करता है । इस दृष्टि से आधुनिक हिन्दी साहित्य की क्या प्रगति है, हम आँक सकते हैं, और शायद इसीलिए मेकाले ने कहा था कि सारे एशिया का साहित्य अंग्रेजी साहित्य की एक अलमारी के बराबर भी नहीं, हिन्दी का क्या कहना । यदि हम चाहते हैं कि दुबारा ऐसा शब्द कोई अपने मुँह से यहाँ के साहित्य के बारे में न निकाले तो हमें जल्दी से जल्दी होश में आ जाना चाहिए और भारतीय विभिन्न कलाओं पर उच्चतम साहित्य का निर्माण करना चाहिए । आज कला का विद्यार्थी या कला-रसिक प्रेरणा लेने के लिए जब हिन्दी साहित्य की ओर निहारता है तो उसे निराश होना पड़ता है । मेरा ख्याल है कि हिन्दी-प्रेमी इसे एक चुनौती के रूप में लेना स्वीकार करेंगे ।
यों हिन्दी भाषा में भी साहित्यकार कला पर कभी-कभी शौकिया तौर पर लिखने का प्रयत्न करते हैं और यह अच्छे लक्षण हैं, पर दिक्कत तब होती है जब वे केवल सुनी भाषा बोलते हैं, जिससे यह तुरन्त ज्ञात हो जाता है कि कला में रस उन्हें अभी नहीं मिल पाया है, और बस सब मजा किरकिरा हो जाता है । अच्छा साहित्यकार मनुष्य तभी बन पाता है जब वह जीवन में रस लेता है, जीवन में आनेवाली प्रत्येक वस्तु तथा घटना उसके हृदय में घर कर चुकी हो, उस पर उसने विचार तथा मनन किया हो । साहित्य का निर्माण केवल शब्दों से नहीं होता, बल्कि आत्मानुभूति पर निर्भर करता है । किसी कलाकार के बारे में यह कह देना कि वह महान् है, अद्भुत है--इतने से ही उसकी कला का परिचय नहीं मिल सकता । जब तक वह अपनी अनुभूति प्रकट नहीं करता, उसका वर्णन बेकार हो जाता है और मालूम पड़ता है कि ये शब्द इसने कहीं से चुराये हैं ।
आज की आधुनिक चित्रकला एक अनोखा रूप धारण कर रही है और दिन-दिन उसका