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आध्यात्मिक प्रवृत्ति


ये सभी विचार भारतीय अध्यात्मवाद के परिचायक हैं और यही सत्य यहाँ के जन-जन की अनुभूति में व्याप्त है।

महात्मा अरविन्द ने कला का कार्य समझाते हुए अपनी पुस्तक 'द सिग्नीफिकेन्स ऑफ इण्डियन आर्ट' में बड़े ही सरल शब्दों में कहा है "कला का सर्वोच्च ध्येय यही है कि वह अनन्त तथा दैवीय आत्मा की आत्मानुभूति प्रदान करे, प्रात्माभिव्यंजना करे। अनन्त को जीवित प्रतीकों से व्यंजित करे तथा दैवीय को अपनी शक्ति से प्रकाशित करे।" यही सर्वदा भारतीय कला का प्रेरणासूत्र तथा मूलाधार रहा है और इसी ओर पाश्चात्य कला का ध्यान आकर्षित हुआ है। हमारी आधुनिक कला का मूलाधार सात समुद्र पार नहीं है बल्कि इसी मिट्टी में है। वैसे कभी भी किसी देश की कला प्रभाव-मुक्त नहीं रहती।