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आध्यात्मिक प्रवृत्ति


कुछ आलोचक एरिक न्यूटन की धारणा से सहमत होते हुए स्वीकार करते हैं कि भावी चित्रकला की प्रवृत्ति इन तत्त्वों की खोज की ओर होगी जो अबतक अर्जित उसके प्रयोगों तथा शैलियों की शक्ति को अपने में स्थापित करके अधिक स्थायी रूप दे सकें। यहाँ वे पुनः अपनी बात-वैयक्तिक स्वतंत्रता को काटते हैं। आधुनिक कला के बारे में एरिक न्यूटन के विचार स्वयं भी कन्फ्युज्ड से हैं। एरिक न्यूटन ने पूर्वीय कला को भी बुरी तरह चित्रित किया है। अपनी पुस्तक 'यूरोपियन पेंटिंग और मूर्ति-कला' में पूर्वीय तथा पश्चिमी कला पर विचार करते हुए उन्होंने पूर्वीय कला को जड़ता की संज्ञा प्रदान की है और पाश्चात्य कला को व्यापक तथा प्रगतिशील कहकर पूर्वीय कला को निम्न श्रेणी का घोषित करने का कष्ट किया है। उन्होंने कहा है--"सारी पूर्वीय कला अपनी निर्जीवता तथा निष्प्रियता से मुझे बिलकुल बेजान बना देती है। यह आवश्यकता से अधिक सुन्दर है, परन्तु मानवता से हीन है।" ऐसे विचारोंवाले व्यक्ति के आधार पर यदि हम कला का मूलाधार निश्चित करें तो कहाँ तक न्याय होगा?

अधिकतर आलोचक यह साबित करने का प्रयत्न करते हैं कि वैयक्तिक आत्म-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही आधुनिक कला का मूलाधार है। आधुनिक कलाकार के 'विशिष्ट अनुभव' को मान्यता देते हुए वे भारतीय रस-सिद्धान्त की दोहाई भी देते हैं और अन्त में इसके बिलकुल विपरीत वे कला को लोकोन्मुखी होने का आदेश देते हैं। वे बड़ी ही सरलता से अपना कन्फ्यूजन स्वीकार करते हैं। यह नहीं पता चलता कि वे वैयक्तिक आत्म-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ओर हैं या लोकोन्मुख? ये विचार परस्पर-विरोधात्मक है।

आधुनिक कला को इस प्रकार कन्फ्यूज्ड (भ्रामक) तरीके से पाठक के सामने रखना आधुनिक कला के प्रति अन्याय करना है और खतरे से खाली नहीं।

इस प्रकार तो आधुनिक चित्रकला का मूलाधार बिलकुल भ्रम-मूलक बन जाता है, और इस बात का पता ही नहीं चलता कि आधुनिक कला का दार्शनिक धरातल क्या है तथा आधुनिक कला क्यों और किस ओर जा रही है।

आधुनिक चित्रकला का रूप यथार्थ चित्रण का बिलकुल विपरीत रूप है, यह तो साफ दृष्टिगोचर होता है। कला ने यह रास्ता क्यों अपनाया इसका सामाजिक मूलाधार तो यही है कि उन्नीसवीं शताब्दी में ही फोटो कैमरा तथा आगे चलकर फिल्म कैमरा सिनेमा के रूप में इस प्रकार पाया कि यथार्थ चित्रण का लक्ष्य ही इस आविष्कार ने पूर्ण कर दिया। जिस प्रकार कपड़ा बुनने की मशीन बनने से साथ ही जुलाहों का काम खत्म हो गया, उसी प्रकार कैमरा के साथ यथार्थ चित्रण का। यहीं से कला के क्षेत्र में कल्पना के आधार पर