आध्यात्मक प्रवत्ति
इस सत्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारतवर्ष, जहाँ तक साहित्य, कला और संगीत का प्रश्न है, अन्य देशों से कभी भी पीछे नहीं रहा। यह बात सभी सुलझे हुए विचारक एक मत से स्वीकार करते हैं। सच पूछिए तो ज्ञान का पहला दिया भारतवर्ष में ही जलाया गया। ऐसी स्थिति में हमारे हृदय को तब धक्का लगता है जब कोई लेखक बिना सोचे-विचारे भारत को किसी अन्य देश के, विशेषतया पश्चिम के, पीछे चलनेवाला घोषित कर बैठता है, वह चाहे साहित्य के क्षेत्र में हो या कला के। यह बात आधुनिक चित्रकला तथा चित्रकारों के प्रति एक 'कन्फ्यूजन' इंगित करती है। इस ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट करना नितान्त आवश्यक जान पड़ता है।
कला-आलोचक भारतीय आधुनिक चित्रकला पर केन्द्रित न होकर संसार भर की आधुनिक कला पर दृष्टिपात करते हैं, परन्तु वे अपना ही मत सामने रखकर तथा अपना ही मापदंड सामने रखकर संसार भर की आधुनिक चित्रकला का मूलाधार प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते हैं। यह प्रयास उनके आत्म-विश्वास को व्यक्त करता है, परन्तु उनकी रचनाओं में कहीं भी नहीं मालूम पड़ता है कि वे संसार भर को आधुनिक कलापर दृष्टि रखकर मूलाधार निश्चय करते हों। उन्हें चाहिए कि संसार-भर के कला-मर्मज्ञों, कलाकारों के विचारों का अध्ययन प्रस्तुत करते हुए अपना दृष्टिकोण भी सामने रखें जिसमें उनकी बात समझ में आये। लेकिन वे आधुनिक चित्रकला को अपना समझकर निश्चयात्मक ढंग से मनचाही बातें कहते हैं।
वे यह मानते हैं कि भारतीय चित्रकला पाश्चात्य आधुनिक चित्रकला से अति प्रभावित हो रही है और भारतीय आधुनिकता एक प्रकार से पाश्चात्य की नकल है तो भी 'मूलाधार' खोजते समय वे यह ध्यान में नहीं लाते कि पाश्चात्य विचारों को भी दृष्टि में रखें। आधुनिक भारतीय चित्रकला का मूलाधार पश्चिम में है, यह बात उनके वक्तव्यों से साफ व्यक्त होती है, पर फिर भी वे पाश्चात्य विचारों पर दृष्टि नहीं डालते जब कि आधुनिक चित्रकला पर पश्चिम से सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और सैकड़ों कलाकारों के चित्रों के अलबम