१६४७ ई० में भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की जो एक महान क्रान्ति का फल है । भारतविदेशियों की सत्ता से मुक्त हुआ । स्वतंत्रता की इस क्रान्ति का मुकाबिला अंग्रेज न कर सके । उन्हें भारत छोड़ना पड़ा । स्वतंत्रता की लहर प्रत्येक भारतीय की नस-नस में दौड़ने लगी, चाहे वह गरीब हो या अमीर, छोटा हो या बड़ा, पढ़ा-लिखा हो या जाहिल । कलाकार, साहित्यकार, विचारक -- सभी ने स्वतंत्रता की गंगा में स्नान किया । हमने अपने विचार, सामाजिक जीवन तथा कार्य, सभी में स्वतंत्रता का अनुभव करना आरम्भ किया । जिस प्रकार तूफान के खत्म हो जाने के पश्चात् वह सष्टि के प्रत्येक पदार्थ पर अपनी छाप छोड़ जाता है, उसी प्रकार स्वतंत्रता का तूफान अपनी स्वतंत्रता की भावना यहाँ के प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क पर अंकित कर गया । हो सकता है कि सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टिकोण से समाज का खाका इसका अधिक लाभ न उठा सका हो, परन्तु समाज के मूल कर्णधार साहित्यिकों, कलाकारों और विचारकों के भीतर यह स्वतंत्रता का तूफान एक गहरी छाप छोड़कर ही गया । विचारों की स्वतंत्रता इसमें सबसे प्रधान है ।
कलाकार तो ऐसे प्रभावों को बहुत ही शीघ्रता से ग्रहण करता है और उसी का फल है आधुनिक भारतीय चित्रकला में स्वतंत्र चित्रण का एक तूफान । इस तूफान से पहले भारतीय चित्रकला बंगाल शैली के सहारे जीवित होने का साहस कर रही थी । एकाएक कला के क्षेत्र में एक नया तूफान उमड़ पड़ा, स्वतंत्र चित्रण का । तूफान दिन पर दिन जोर पकड़ता जा रहा था । अभी उसकी तीव्रता बढ़ती ही जा रही है । भारतीय चित्र-कला पर यह तूफान क्या असर छोड़कर जायगा, यह आज निश्चित नहीं कहा जा सकता, परन्तु आज भी हम तूफान का जो रंग देख रहे हैं उसका संक्षिप्त वर्णन तो कर ही सकते हैं और उसी आधार पर उसका विश्लेषण भी किया जा सकता है ।