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आधुनिक सूक्ष्म चित्रकला

किया। चित्रकार अब किसी वस्तु का चित्र नहीं बनाता बल्कि रंग, रूप, आकार तथा रेखाओं के माध्यम से वही करने का प्रयत्न करता है जो सृष्टि अपने अनेक साधनों से करती हैं।

सृष्टि में क्या होता है――अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनती-बिगड़ती हैं, जैसे समुद्र तथा उसकी लहरें और तूफान, बहती नदियाँ, अनेक प्रकार के आकार तथा रूप-रंग के जीव-जन्तु पक्षी, इत्यादि; पहाड़, आसमान, बादल, वर्षा, धूप इत्यादि। अनेकों रूप हमें सृष्टि द्वारा निर्मित दिखाई पड़ते हैं। सृष्टि की इन वस्तुओं का अपना अलग-अलग रूप, आकार, रंग तथा प्रकृति है। जैसे अडिग लम्बा चौड़ा ऊँचा पहाड़, अथाह जल का समुद्र, कलकल करती गतिमान् नदियाँ, उमड़ते-घुमड़ते बादल, अनन्त शान्त नील आकाश, हरे-भरे वृक्ष तथा लताएँ, खूखार शेर चीता-से जानवर, सुन्दर चहचहानेवाले पक्षी तथा अनेकों अन्य वस्तुएँ प्रकृति में पायी जाती हैं, जिनका भिन्न-भिन्न रूप, रंग, आकार तथा प्रकृति है। पत्थर में कड़ापन, जल में प्रवाह, बादलों की उड़ान, सूर्य की किरणें, हवा के झोंके, सभी में अपनी-अपनी एक विशेषता तथा गति है। पानी बहता है, हवा चलती है, धूप लगती है, आग जलती है। मब वस्तुएँ अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार काम करती हैं और इनके निर्माण के सिद्धान्त हैं, जैसे धुआँ ऊपर जाता है, पानी गहराई की ओर बहता है, आग रोशनी देती है। धुआँ पानी की तरह बह नहीं सकता, पानी आग की तरह रोशनी नहीं दे सकता, आग बह नहीं सकती। सभी अपने-अपने सिद्धान्त पर, प्रकृति पर चलते हैं। सभी की गति निश्चित है, सभी का रूप निश्चित है, अर्थात् सृष्टि की प्रत्येक वस्तु नियमित है। फूल पत्थर की तरह कड़ा नहीं होता, लोहा रुई की तरह मुलायम नहीं होता। सबका अपना अलग-अलग रूप है।

कलाकार सृष्टि के इस रहस्यात्मक सत्य को स्वीकार करता है और निरन्तर इसे अपनी कला के द्वारा व्यक्त करने का प्रयत्न करता है। वह प्रकृति की प्रत्येक वस्तु को एकाग्रता के साथ निहारता है और उसके रूप, रंग, आकार तथा उसकी प्रकृति को समझने का प्रयत्न करता है। वह चाहता है अपने चित्रों में इन्हीं प्राकृतिक सिद्धान्तों के द्वारा रचना करे। वह प्रकृति के रूपों की नकल नहीं करना चाहता, बल्कि जिन सिद्धान्तों पर प्रकृति रचना करती है उन्हीं के आधार पर वह अपनी मौलिक रचना करना चाहता है।

इसका यह अर्थ नहीं कि कलाकार ईश्वर बनना चाहता है। वह भी एक रचयिता है और चाहता है कि ऐसी रचना करे जो सत्य के आधार पर हो। आखिर चित्रकार अपने कागज या कैनवस पर एक दूसरी जीती-जागती दुनिया तो नहीं बना सकता जैसी कि हमारी दुनिया है, न वह ऐसा करने का दम भरता है। वह तो केवल इतना ही चाहता है कि अपने