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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

इच्छा के अनुसार नये-नये तरीकों से, नये-नये रंगों से चित्र बनाना आरम्भ करता है और अनेकों प्रकार के ‘वाद’ चित्रकला के क्षेत्र में दृष्टिगोचर होते हैं, जैसे लोककला, क्यूविज्म, सूरियलिज्म, फाविज्म, पाइन्टलिज्म, ऐब्सट्रेक्टशनिज्म, इत्यादि अनेकों शैलियों का प्रादुर्भाव हुआ और होता जा रहा है।

सूक्ष्म-चित्रकला इन प्रयासों का एक अति काल्पनिक तथा प्रगति-सूचक रूप है और आज इसका प्रभाव संसार के सभी आधुनिक चित्रकारों पर दिखाई पड़ रहा है, जैसा हमने पहले देखा है कि कैमरे के आविष्कार की वजह से यथार्थ चित्रण की प्रगति बिलकुल रुक गयी और उसके स्थान पर व्यक्तिगत प्रयोगों का प्रादुर्भाव हुआ। अनेकों नयी-नयी शैलियाँ सामने आयीं जिनका रूप कार्यवश यथार्थ रूप से हटकर अति काल्पनिक होता चला गया और सूक्ष्म-कला इसी का एक अति-काल्पनिक नमूना है। कैमरा यथार्थ चित्र बना सकता है, किन्तु है तो वह मशीन ही। उसमें मस्तिष्क नहीं है, उसमें हृदय नहीं है, उसमें विचार और कल्पना नहीं है। जिस प्रकार एक ओर उसके द्वारा यथार्थ चित्र बन सकता है उसी प्रकार दूसरी ओर भाव, उद्वेग, विचार और कल्पना की उसमें कमी है जो कैमरे के बस का नहीं। यही जो कैमरे के वश में नहीं है वह मनुष्य के लिए बाकी बच रहा, और आधुनिक चित्रकार भाव, उद्वेग, विचार और कल्पना के आधार पर अपनी प्रगति करने लगा। उसी के परिणाम स्वरूप सूक्ष्म-चित्रकला का प्रादुर्भाव होना सम्भव हुआ। जिसमें कल्पना का बाहुल्य है। चित्रकला अब यथार्थ न होकर काल्पनिक चित्रण की ओर अग्रसर हो रही है। अब आधुनिक चित्र में विषय नहीं होता, कहानी नहीं होती, इतिहास के चरित्र नहीं होते, यहाँ तक कि कोई ऐसी चीज नहीं होती जिसको हमने पहले कभी देखा हो या पहचान सकें, क्योंकि आज की कला कल्पना पर आधारित है, और कल्पना मनुष्य की वह शक्ति है जिसके आधार पर नये संसार की सृष्टि हो सकती है। यही कल्पना मनुष्य, जानवर और मशीन में भेद कराती है। यही कारण है कि मनुष्य इस शक्ति को प्राप्त कर संसार के ऊपर राज्य कर रहा है। मशीन और जानवर दोनों उसके गुलाम हैं। कल्पना के आधार पर ही हमारी प्रगति हुई है और आगे भी होगी। चित्रकार यह बात अच्छी तरह जानता है और इसीलिए काल्पनिक चित्रकला या सूक्ष्म-चित्रकला का इतना प्रसार हुआ है। अब हमारे आधुनिक चित्रों में यथार्थ चित्रण खोजना या कैमरे के चित्रों की तरह यथार्थता खोजना हमारी महान् मूर्खता है, ‘हिमालयन’ भूल है।

सूक्ष्म चित्रकला का लक्ष्य

इस प्रकार चित्रकार ने अपनी कला के द्वारा आँखों देखी चीजों या दृश्यों का वर्णन करना छोड़कर कला के द्वारा अपने सूक्ष्म अनुभव-जन्य सत्य का चित्रण करना प्रारम्भ