ऐसी तमाम सुविधाएँ प्रदान कीं, यहाँ तक कि हम ऐटमिक शक्ति से चाँद और तारों में भी भ्रमण कर सकेंगे और घर बना सकेंगे। हमारे लिए घर, कपड़ा, खाना तथा अनेक सुविधाएँ इस शक्ति से प्रचुर मात्रा में प्राप्त हो सकेंगी। हमें सुख और शान्ति मिल सकेगी। परन्तु साथ ही साथ विज्ञान के शाप भी हमारे ऊपर हैं, ऐटम बम, हाइड्रोजन बम, इत्यादि। जैसे हर वस्तु के दो पक्ष होते हैं, वैसे ही विज्ञान के भी हैं।
विज्ञान का प्रभाव चित्रकला के क्षेत्र में भी कुछ कम नहीं पड़ा है। चित्रकला अपनी गति से प्रगति करती जा रही थी और यथार्थ चित्रण की चरम सीमा पर पहुँच रही थी कि एकाएक विज्ञान ने कैमरे का आविष्कार सामने रखा। चित्रकला का लक्ष्य था अति यथार्थ- चित्रण और कैमरे ने इस लक्ष्य का एक प्रकार से अन्त कर दिया। कैमरे के द्वारा बढ़िया से बढ़िया यथार्थ चित्र तैयार होने लगे। जिस प्रकार कपड़ा बनाने की मशीन बन जाने से जुलाहे का काम छिन गया, उसी प्रकार से कैमरा बन जाने से चित्रकारों का काम छिन गया और ऐसा सारे संसार में हुआ जहाँ-जहाँ कैमरा पहुँचा। इस सदी के चित्रकार एक प्रकार से बेकार हो गये, बेरोज़गार हो गये। उनका जीना मुश्किल हो गया। जो कुछ अभी तक उन्होंने सीखा था उसका अब कोई उपयोग नहीं रह गया। जो काम इतने वर्षों में उन्होंने सीखा था वह कैमरा एक क्षण में कर सकता है। चित्रकार जो समाज में उपयोगी शक्ति था, अब समाज के लिए एक प्रश्न बन गया । संसार भर में चित्रकार की दुर्दशा हुई। चित्रकार चित्र बनाते और उनका मूल्य देनेवाला कोई नहीं मिलता। चित्रकार भूखों मरने लगे, समाज ने उनसे लाभ उठाना छोड़ दिया और उनके सामने अब कोई रास्ता नज़र नहीं आता। बहुत से चित्रकार कैमरा खरीदकर 'फोटोग्राफर' हो गये और बहुत से व्यावसायिक चित्रकलाका कार्य करने लगे, क्योंकि जीवन का साधन उन्हें खोजना ही था। फिर भी कुछ ऐसे भी चित्रकार थे जिन्होंने भूखे रहना स्वीकार किया, परन्तु अपना कार्य नहीं छोड़ा और अब उनकी चित्रकला समाज के लिए न होकर स्वांतःसुखाय होने लगी। चित्रकार अपने लिए चित्र बनाने लगा क्योंकि इसमें उसे प्रानन्द मिलता था, वह अपनी मुसीबतों, दुख-दर्द को भुला सकता था। यहीं पर चित्रकला समाजवाद से हटकर व्यक्तिवाद की ओर झुकती प्रतीत होती है।
जब कला या कोई कार्य व्यक्तिवादी होता है तब मनुष्य जो कुछ करता है वह अपने इच्छानुसार करता है और जिसे वह स्वयं उचित समझता है वही करता है। आज का कलाकार यही कर रहा है। जब प्रत्येक चित्रकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्राप्त हो गयी तो यह भी सच है कि प्रत्येक चित्रकार एक ही तरह के विचारों पर आधारित चित्र नहीं बना सकता और यहीं से चित्रकला में प्रयोगवाद आरम्भ होता है। प्रत्येक चित्रकार अपनी-अपनी