घनत्व-निर्माण की प्रवृत्ति
सन् १९०८ ई० में फ्रांसीसी कलाकार पिकासो तथा ब्रेक ने अपने चित्रों के स्वरूपों में आकार तथा घनत्व उत्पन्न करने का प्रयत्न किया और तभी से घनत्ववाद के रूप में चित्रकला की एक शैली ही चल पड़ी। चित्रों में घनत्व उत्पन्न करने का प्रयास यद्यपि पुराना है, परन्तु एक विशेप शैली के रूप में इसका प्रचार बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही हुआ। विश्व-विख्यात इटालियन चित्रकार माइकेल ऐंजेलो ने पन्द्रहवीं शताब्दी में ही अपने चित्रों में घनत्व दर्शाने का प्रयत्न किया था और पाश्चात्य कला के इतिहास में वह इस विचार से अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है। इसी प्रकार यदि पूर्वीय देशों की कला में घनत्ववाद खोजा जाय तो उसका रूप डेढ़-दो हजार वर्ष की प्राचीन भारतीय कला अजन्ता शैली में भी देखने को मिलता है। सच कहा जाय तो घनत्व उत्पन्न करने की भावना अति प्राचीन है, यद्यपि अधिक सफलता तथा प्रौढ़ता हमें बीसवीं शताब्दी में आकर दृष्टिगोचर होती है।
घनत्ववाद का प्रेरणा-सूत्र भवन-निर्माण कला तथा मूर्तिकला ही है। बहुत से विद्वान् भवन-निर्माण कला तथा मूर्तिकला को चित्रकला की जन्मदात्री मानते हैं, क्योंकि चित्रकला से पूर्व ही इन दोनों कलाओं का विकास हुआ है। चित्रकला बाद में पायी। आरम्भ में चित्रकला कोई अलग वस्तु नहीं थी, बल्कि भवन-निर्माण कला,मूर्तिकला या वास्तुकला की एक अंग ही थी। आगे चलकर क्रमशः चित्र-रचना एक अलग कला के रूप में अपना स्थान लेती है, और इसका विकास अपने ढंग पर होता है। प्राचीन समय में चित्रकार या कलाकार के स्थान पर शिल्पी शब्द का प्रयोग होता था। शिल्पी वास्तुकला, मूर्तिकला, तथा चित्रकला सभी का ज्ञाता होता था। इतना ही नहीं बल्कि अन्य सामाजिक विद्याओं से तथा सिद्धान्तों से भी पूर्ण परिचित होता था। ऐसे ही शिल्पी चित्रकार भी होते थे। मूर्तिकला तथा वास्तुकला में घनत्व होता है, और इसको ध्यान में रखकर ही रचना की जाती है। यही कारण है कि प्रारम्भ से ही कलाकारों को चित्र में घनत्व उत्पन्न करने की भावना होती रही है यद्यपि भित्ति-चित्र या कागज पर यह उत्पन्न करना बड़ा कठिन था, परन्तु इस ओर प्राचीन समय से ही प्रयास हुआ है।
मूर्ति में सुडौल आकार होता है। उसमें लम्बाई, चौड़ाई तथा मोटाई (घनत्व) भी