पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/१५३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३८
कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

उन्हें काफी सफलता भी मिली। परन्तु बीसवीं शताब्दी तक आते-आते वह चेष्टा विफल होती-सी आभासित होने लगी। कदाचित् उन्हें अपनी अनधिकार चेष्टा का आभास हुआ कि प्रकृति की हूबहू नकल करना इतना सरल नहीं, शायद मनुष्य की शक्ति के बाहर है। प्रकृति की नकल-करते-करते वे थक गये। इसका यह तात्पर्य नहीं कि प्रकृति की हूबहू नकल करना उन्होंने छोड़ दिया, बल्कि वे सोचने लगे कि क्या प्रकृति की नकल करने का कोई सरल तरीका नहीं है। जब आदमी थक जाता है, तो सदैव सरल तरीका खोजता है। और यूरोप ने सरल तरीका खोज भी लिया। यही तरीका इम्प्रेरिनस्ट पार्ट याने आभासिक चित्रकला कहलाता है।

आभासिक चित्रकला प्राकृतिक रूपों को चित्रित करने की एक शैली है। इसके द्वारा आसानी से व्यवहार-कुशलता, चमत्कार, टैकनिक के आधार पर, प्रकृति के रूप बनाये जाते हैं जो दूर से देखने पर बिलकुल स्वाभाविक लगते हैं। आधुनिक यूरोपीय कला-आलोचक हर्बट रीड आभासिक चित्रकला पर टीका करते हुए कहते हैं—

"चित्रकला प्रकृति की नकल न होकर, एक चमत्कार हो गयी जिसके द्वारा प्रकृति का साधारण रूप आभासित होता था।" यूरोप में आभासिक चित्रकला का आन्दोलन बड़े वेग से फैला और काफी सफल रहा। इसके नेता सूरट तथा सिगनक माने जाते हैं और इनमें मुख्य चित्रकार मैने तथा माने इत्यादि हैं। इस शैली का सबसे अधिक विख्यात तथा मफल चित्रकार रेनुआ समझा जाता है।

आभासिक चित्रकला का मुख्य प्रयत्न यह था कि चित्र में जो भी प्राकृतिक दृश्य या वस्तु चित्रित की जाय वह इस प्रकार चतुराई से और कार्य-कुशलता से बनायी जाय कि देखने वाले को धोखा हो जाय। जैसे अगर एक बाग का दृश्य आभासिक चित्रकला शैली के अनुसार चित्रित करना है तो चित्रकार पेड़ों को रंगों के छोटे बड़े ढेरों से इस प्रकार ढालेगा कि दूर से देखने पर ये बिलकुल प्राकृतिक पेड़ दिखलाई पड़ेंगे, पर पास से देखने पर केवल रंगों के विभिन्न प्रकार के छोटे-मोटे निरर्थक ढेर दिखाई देंगे। अर्थात् प्रकृति के रूपों की अक्षरशः नकल नहीं की जायगी, बल्कि उन वस्तुओं की ऊपरी सतह तथा वर्ण या आवरण ही इस कार्य कुशलता से चित्रित किया जायगा कि वह देखने में बिलकुल प्राकृतिक लगे। जिस प्रकार प्रकृति के रूप सूर्य के प्रकाश के परिवर्तन के साथ बदलते रहते हैं, उसी के अनुसार चित्र में भी प्रकाश और छाया का इस प्रकार सम्मिश्रण किया जाय कि वस्तु प्राकृतिक लगे। इसीलिए इन चित्रकारों ने प्रकाश और छाया का वैज्ञानिक अध्ययन किया और उनसे प्राप्त सिद्धान्तों का अपनी चित्रकला में वैज्ञानिक ढंग से प्रयोग किया। उन्नीसवीं शताब्दी वैज्ञानिक युग कहा गया है और चित्रकला में भी विज्ञान का होना आवश्यक है। अस्तु, हम देखते