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वर्णनात्मक प्रवृत्ति

भाषण का माध्यम तो प्रचार में था ही, परन्तु जो कार्य चित्रकला कर सकती थी, वह इससे भी नहीं हो सकता था। भाषण तो फिर भी सर्वग्राह्य नहीं हो सकता था, परन्तु चित्रकला थी। प्रत्येक मन्दिर, राजभवन, राजसभाएँ, जनता-गृह, निवास-स्थान, इस प्रकार की वर्णनात्मक शैली के शिक्षालय थे और जनता के मनोरंजन तथा विकास के साधन थे । वर्णनात्मक शैली के सबसे उत्कृष्ट उदाहरण हमें बौद्ध चित्रकला में मिलते हैं, जो आज भी अजन्ता-एलोरा में प्राप्त हैं।

आधुनिक समय में शिक्षा के अनेकों माध्यम ज्ञात हो गये हैं । पुस्तकें हजारों, लाखों की संख्या में छप-छपकर तैयार हो रही हैं। ग्रामोफोन, रेडियो तथा टेलीविजन का आविष्कार और प्रचार हो चुका है । बल्कि प्रिन्टिग तथा फोटोग्राफी स्थान-स्थान में फैल गयी है । यातायात के नये-नये तरीके आविष्कृत हो चुके हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर मनुष्य जरा से समय में पहुँचने लगा है। ऐसे समय में वर्णनात्मक चित्रकला ही जनता की शिक्षा का केवल माध्यम नहीं है, न उसका इतना महत्त्व ही रह गया है। फिर भी चित्रकला में वर्णनात्मक शैली को आज भी स्थान है, यद्यपि अब आधुनिक चित्रकार इसका उपयोग बहुत कम कर रहे हैं, परन्तु चित्रकला की शैलियों में वर्णनात्मक शैली का एक अपना स्थान है और रहेगा।

आधुनिक वर्णनात्मक चित्रकला शैली का रूप यद्यपि परिवर्तित हो गया है, परन्तु आज भी ऐसे अनेक चित्रकार हैं जो वर्णनात्मक शैली को अपनाये हुए हैं। आज के वर्णनात्मक शैली के चित्रकार पश्चिम से प्रभावित होकर अपनी प्राचीन वर्णनात्मक शैली को भला बैठे हैं। जो शक्ति इस प्राचीन शैली में थी वह आज नहीं है। यदि हमें वर्णनात्मक शैली का उपयोग करना है तो प्राचीन परम्परा को आधार बनाना पड़ेगा, भले ही उसे हम आधुनिक अनुभव से परिमार्जित करें।

प्राचीन भारतीय वर्णनात्मक शैली की मुख्य विशेषता यह थी कि उसके चित्रों में वर्णन उसी भाँति स्वाभाविक रूप में होता था जैसे कथा-कहानियों में । एक ही भित्ति पर क्रमबद्ध रूप में एक के बाद दूसरा दृश्य प्राता जाता था, और कहानी की भाँति मनुव्य आगे बढ़ता था। बुद्ध का जन्म, उनके बाल्यकाल के दृश्य, यौवन-काल के दृश्य, प्रौढ़ावस्था के दृश्य, तथा वृद्धावस्था के दृश्य, इसी प्रकार क्रम चलता था। एक ही चित्र में अकबर का राजमहल, उसकी चहारदीवारी, बाह्य वातावरण, बाहर खड़े दरबारियों का दृश्य, भीतर का दृश्य, उसके तख्त का दृश्य, सभी चित्रित होते थे । सभी दृश्य एक समय के तथा सम्बन्धित होते थे । परन्तु आधुनिक वर्णनात्मक चित्र एक-एक कागज