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प्रदीकात्मक प्रवृत्ति

था। यूरोपीय कला यथार्थ स्वरूपों का चित्रण करने में काफी सफल हो चुकी थी। नये-नये सिद्धान्त भी बन चुके थे, जैसे दृष्टि-विज्ञान इत्यादि । यतः पूर्वी चित्रों में यह दृष्टि-विज्ञान नहीं प्रयुक्त होता था, यूरोपीय लोग यही समझते थे कि अभी पूर्वी देशों की चित्रकला बहुत ही प्रारम्भिक स्थिति में है, यद्यपि वहाँ चित्रकला का कार्य यूरोप से हजारों वर्ष पूर्व से होता रहा है। प्रगति या विकास, किसी एक जाति अथवा वर्ग की संपत्ति नहीं है । यह तो आज का विज्ञान तथा मनोविज्ञान दोनों मानते हैं कि प्रगति सभी जगह एक प्रकार से होती है। जो चित्रकला हजारों वर्ष से बन रही है उसमें विकास भी अधिक होगा, यह बिलकुल स्वाभाविक है । यह सोचना कि उस देश में जहाँ कला का कार्य हजारों वर्षों से होता आ रहा है, लोगों को पस्पेक्टिव का ज्ञान न हुआ होगा, उचित नहीं है । हाँ, हम यह कह सकते हैं कि शायद यहाँ लोगों ने पस्पेक्टिव का ज्ञान चित्रकला में आवश्यक ही नहीं समझा । यहाँ की कला प्रतीकात्मक ही बनी रही और उसी ओर प्रगति करती रही। कला का प्रत्येक रूप आत्म-अभिव्यक्ति है, इच्छाओं की पूर्ति है । पूर्वी कला ने पूर्वी कलाकार को सन्तोष प्रदान किया, क्योंकि उसकी निर्माणकारी वृत्ति को सन्तोष मिला। उसने रेखाओं में लय खोजी, रंग में सामंजस्य (समता) और रूपों में पूर्णता । यह सब उसे बिना पक्टिव की सहायता के मिला ।

आधुनिक यूरोपीय चित्रकला पर भारतीय प्रतीकात्मक तथा लाक्षणिक चित्रकला का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा । उन्नीसवीं शताब्दी में यथार्थवादी चित्रकला तथा आभासिक चित्रकला, जो यूरोप में अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी, एक बार परिवर्तित हो गयी । बीसवीं शताब्दी की आधुनिक कला का प्रारम्भ पाल गोगों से होता है, जिस ने आभासिक तथा उत्तर आभासिक चित्रकला का रुख ही बदल दिया और प्रतीकात्मक, लाक्षणिक तथा आत्म-अभिव्यंजनात्मक चित्रकला की नयी धारा की नींव डाली। आज यूरोप में इस नयी धारा का सर्वथा प्रचार हो गया है । यूरोप की कला प्रतीकात्मक हुई जा रही है और भारतीय तथा पूर्वी चित्रकला उनका पथ-प्रदर्शन करने के लिए शुभा- गमन कर रही हैं।

आधुनिक भारत में चित्रकला के क्षेत्र में लोग भ्रम में पड़े हैं । अंग्रेजी आधिपत्य के साथ यहाँ भी यथार्थवादी चित्रकला का काफी प्रादुर्भाव हो चुका है । स्वामिभक्त गुलामों की तरह भारतवासियों ने अंग्रेजों को अपना पथ प्रदर्शक माना । अंग्रेज तो भारत छोड़- कर चले गये, इसलिए अब हमें पथ सूझता ही नहीं। आज भी यहाँ यथार्थवादी चित्रकला