पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/१२१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सरलता की प्रवृत्ति

चित्र-कला का इतिहास भारतीय पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अति प्राचीन है । परन्तु यदि हम उतना पीछे न भी जायँ तो भी चित्रकला प्रागैतिहासिक काल में तो निश्चित ही थी। उसके कुछ उदाहरण आज भी प्राचीन कन्दराओं की भित्तियों पर अंकित युगों से चमक रहे हैं। ये उस समय के चित्र हैं जब संसार के मनुष्य जंगली जानवरों की भाँति केवल अपने भोजन का सामान जुटाते हुए नंगे घूमा करते थे । संसार के इतिहास में चित्रकला का सबसे प्राचीन उदाहरण ऊपरी पैलियोलिथिक काल में मिलता है । उनका निश्चित समय तो अभी तक नहीं मालूम हुआ है, परन्तु अनुमान लगाया जाता है कि २०,००० और १०,००० बी० सी० के लगभग होगा। भारत में भी पापाण-युग के चित्रकला के उदाहरण मिलते हैं। उस समय की संस्कृति को हम जंगलीपन ही कहते हैं और समझते हैं । पर उन जंगलियों को भी कला (चित्रकला) के प्रति रुचि थी । उसका उपयोग उनके लिए भी था। कला का उनके जीवन में क्या उपयोग था, यह विचारणीय प्रश्न है ।

अपने को व्यक्त करने की प्रवृत्ति जानवरों में आज भी पायी जाती है। वे अपने हाव- भावसे, व्यवहार से, बोलियों से, अपने को व्यक्त करते हैं । यदि हम उन आदिम-निवासियों को जंगली कहें और उन्हें जानवरों की श्रेणी में गिनें तो भी यह तो मानना ही पड़ता है कि इन्हीं जानवरों की भाँति उन्हें भी अपने को व्यक्त करने की आवश्यकता रही होगी। हम यह मानते हैं कि चित्रकला के द्वारा हम अपने भावों को व्यक्त करते हैं, तो यह भी बिलकुल निर्विवाद है कि उन वनवासियों को भी अपने को व्यक्त करने की प्रवृत्ति ने ही कला की ओर प्रेरित किया होगा । भाषा की उत्पत्ति भी इसी प्रकार हुई और प्रागैतिहा- सिक चित्रकला देखने में लिपि की भाँति ही प्रतीत होती है । जिस प्रकार लिपि प्रतीकों के द्वारा भाव व्यक्त करती है, उसी प्रकार प्रागैतिहासिक चित्र भी प्रतीकों द्वारा व्यक्त किये गये जान पड़ते हैं। पाषाण-युग में मनुष्य के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या भोजन, और प्राकृतिक आक्रमणों तथा आपसी आक्रमणों से बचाव की थी। यही समस्याएँ हर समय उनको घेरे रहती थीं। इन्हीं समस्याओं को या इनके हल को ही वे अवकाश के समय सोचते और चित्रित करते थे ।