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चित्रकला और रूपकारी

चित्रकला में रूपकारी (डिजाइन) का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। रूपकारी का अर्थ है कल्पना से रचना करना। यह शब्द धीरे-धीरे भारतवर्ष की अन्य भाषाओं में भी उसी अर्थ के साथ प्रयुक्त होने लगा है। चित्रकला में 'डिजाइन' से उस चित्र को सम्बोधित करते हैं, जिसमें कल्पना प्रधान है। हिन्दी में इस शब्द के स्थान पर परिकल्पना या बेल-बूटा बनाना ही प्रयोग किया जाता है, परन्तु इसका समानार्थी ठीक रूपकारी या बूटेकारी शब्द ही है। इसलिए हम आगे चलकर डिजाइन के अर्थ में रूपकारी या बूटेकारी शब्दों का ही प्रयोग करेंगे।

रूपकारी का अर्थ न तो परिकल्पना ही है और न बेलबूटा बनाना। चित्रकला में भी इसी प्रकार रूपकारी का अर्थ केवल बेलबटा बनाना ही नहीं है, अपितु यह एक सारगर्भित अर्थ का द्योतक है। विचार करने पर ज्ञात होगा कि रूपकारी का अर्थ चित्रकला स्वयं है। जब भी हम रूपकारी शब्द का प्रयोग करते हैं तो मन में एक ऐसे चित्र की कल्पना होती है जिसमें चित्रकला के सभी नियमों, सिद्धान्तों और गुणों का समावेश किया गया है। किसी भी कला में कुछ ऐसे नियम या सिद्धान्त अवश्य होते हैं जिनका पालन करना नितान्त आवश्यक होता है। चित्रकला, संगीतकला, मूर्तिकला, काव्यकला या नृत्यकला में सबसे आवश्यक वस्तुएँ हैं--लय, छन्द गति, सन्तुलन, पुनरावृत्ति, अनुपात, समानुपात, एकता, सुमेल, कल्पना, भाव, उद्वेग, व्यञ्जना और शैली के गुण। इन्हीं के समावेश से सौन्दर्य उत्पन्न होता है। रूपकारी में ये सभी वस्तुएँ आ जाती हैं। हम चित्रकला को रूपकारी भी कह सकते हैं।

रूपकारी का अर्थ आजकल चित्रकला में केवल बेलबूटा बनाना मात्र ही ग्रहण किया जाता है। यह एक संकुचित विचार है और रूपकारी का महत्त्व कम करना है। रूपकारी में कल्पना प्रधान है। रूपकारी सिखाने का मुख्य प्रयोजन यही है कि बच्चों तथा विद्यार्थियों की कल्पना-शक्ति का विकास हो सके और उनमें योजना करने की शक्ति आये। चित्रकला और प्रत्येक ललित-कला में कल्पना की प्रधानता होती है। कल्पना में ही