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कला और हस्तकौशल

आवश्यक हैं। कार्यप्रणाली शिक्षा के माध्यम से गृहीत हो सकती है, और शैली अनुकरण द्वारा सम्पूर्ण नहीं तो अंशतः अपनायी ही जा सकती है। परन्तु अनुकरणजन्य शैली से कला विकसित नहीं हो सकती। कला का विकास और कला की सफलता कलाकार के अभिनव शैली के प्रादुर्भाव पर निर्भर करता है। कार्यप्रणाली और शैली की प्रधानता होते हुए भी यह समझना कि कार्यप्रणाली और शैली ही कला है, एक बहुत बड़ी भूल होगी। ये तो कला के माध्यम हैं जिनसे कला का निर्माण होता है।

हस्त-कौशल या दस्तकारी में तथा कला में सबसे महत्त्वपूर्ण अन्तर है भाव, कल्पना तथा नवीनता का। हस्त-कौशलमें टेकनीक स्थिर रूप में प्रयुक्त होती है, परन्तु कला नयी टेकनीक उत्पन्न करती है, नये भाव तथा कल्पना की अभिव्यक्ति करती है।