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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

आरी, बसूला आदि चलाना नहीं जानता। कोई व्यक्ति चित्रकला का तब तक काम नहीं कर सकता जब तक वह तूलिका-संचालन, या रंगादि की विधियों से अभ्यस्त न हो। कविता करने से पूर्व शब्द-संयोजन करना आना ही चाहिए। प्रत्येक हस्तकौशल और कलाओं में कार्यप्रणाली का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है और वह उसका एक आवश्यक अंग है।

प्रायः कार्यप्रणाली का तात्पर्य हम एक नपी-तुली कार्यकुशलता ही समझते हैं। बसूला चलाने का एक अपना अलग ढंग है, कागज पर तूलिका घुमाने की एक विधि है, शब्दों को छन्दोबद्ध करने का एक नियम होता है। यह कुछ अंश तक सत्य है। रन्दे को यदि लकड़ी समतल करने के लिए चलाना है तो, उसे उलटा नहीं चलाया जा सकता और उसे एक विशेष ढंग से पकड़कर चलाना होगा। कागज पर तूलिका का प्रयोग एक विशेष ढंग से तूलिका के बालों को रंग में डुबा कर कागज पर करना होगा। इस प्रकार प्रत्येक हस्तकौशल और कलाओं में उनके उपकरणों के प्रयोग का निश्चित ढंग है, जिसे हम प्राथमिक कार्य-प्रणाली कह सकते हैं। इस प्राथमिक कार्य-प्रणाली की शिक्षा ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जो कला या हस्तकौशल का काम करना चाहते है, विद्यालय में गुरु की छत्रच्छाया में ही प्राप्त हो सकती है।

प्राथमिक कार्यकुशलता अथवा कार्य-प्रणाली से अवगत हो चुकने ही पर कोई, कुशल शिल्पी अथवा कलाकार नहीं हो सकता, क्योंकि इससे तो कार्यारम्भ मात्र का ही ज्ञान हो पाता है। भवन की आधारशिला चुनने का कार्य यदि किसी व्यक्ति ने किया तो इसका तात्पर्य यह नहीं कि पूरे भवन का निर्माण वही व्यक्ति कर लेगा जिसने आधारशिला का कार्यारम्भ किया है। भवन की आधारशिला के कार्य का तो ज्ञान होना ही चाहिए, परन्तु उसके ऊपर भी बहुत कुछ बनाना है। प्राधार-शिला की जो कार्यशैली थी, उससे अब भवन-निर्माण का कार्य नहीं हो सकता। पूरे भवन का क्या रूप होगा, इसकी कल्पना करनी होगी और तदनुरूप अभिनव कार्यशैली का प्रादुर्भाव अपने अन्वेषण से करना होगा, तभी हम अपने प्रयत्न में सफल होंगे। प्राथमिक कार्यकुशलता (प्रणाली) से जब कोई शिल्पी अथवा कलाकार आगे उठकर कुछ नवीन अथवा मौलिक कल्पनाओं का समावेश अपनी कला में करने लग जाता है, तो उसे शैली के नामसे संबोधित करते हैं। कार्यप्रणाली जानना जितना आवश्यक है उससे भी अधिक आवश्यक है शैली निर्माण करना। जिस हस्त-कौशल या कला में शैली का जितना अधिक या अल्प योग होगा वह हस्तकौशल अथवा कला उतनी ही उच्च या निम्न कोटि की होगी।

किसी भी हस्तकौशल या कला में कार्यप्रणाली और उसकी शैली दोनों ही नितान्त