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स्वामी विवेकानन्द
 

मेरे नौजवान दोस्तो! बलवान बनो। तुम्हारे लिए मेरी यही सलाह है। तुम भगवद्गीता के स्वाध्याय फुटबाल खेलकर कहीं अधिक सुगमता से मुक्ति प्राप्त कर सकते हो। जब तुम्हारी रगें और पुदठे अधिक दृढ़ होंगे तो तुम भगवद्- गीता के उपदेशों पर अधिक अच्छी तरह चल सकते हो। गीता का उपदेश कायरों को नही दिया गया था, किन्तु अर्जुन को दिया गया था जो बड़ा शूरवीर, पराक्रमी और क्षत्रिय-शिरोमणि था। कृष्ण भगवान् के उपदेश और अलौकिक शक्ति को तुम भी समझ सकोगे जब तुम्हारी रगो में खून कुछ और तेजी से दौड़ेगा। एक दूसरे व्याख्यान में उपदेश देते हैं-

यह समय आनन्द में भी आँसू बहाने का नहीं। हम रो तो बहुत चुके। अब हमारे लिए नरक बनाने की आवश्यकता नहीं। इस कोमलता ने हमें इस हद तक पहुँचा दिया है कि हम रुई को गाला बन गये हैं। अब हमारे देश और जाति को जिन चीजों की जरूरत है, वह है-लोहे के हाथ-पैर और फ़ौलाद के सारे घुट्टे और वह दृढ़-सङ्कल्प-शक्ति जिसे दुनिया की कोई वस्तु रोक नहीं सकती, जो प्रकृति में रहयों की तह तक पहुँच जाती हैं और अपने लक्ष्य से कभी विमुख नही होती, चाहे उसे समुद्र की तह में जाना या मृत्यु का सामना क्यों न करना पड़े। महत्ता का मूल-मन्त्र विश्वास है-दृढ़ और अदल विश्वास-अपने आप और सर्वशक्तिमान जगदीश्वर पर विश्वास।'
स्वामीजी को अपने ऊपर जबरदत विश्वास था। स्वयं उन्ही का कथन है-

"गुरुदेव के गले में एकाएक फोड़ा निकल आया था। धीरे-धीरे उसने इतना उग्र रूप धारण कर लिया कि कलकत्त के सुप्रसिद्ध डाक्टर बाबू महेन्द्रलाल सरकार बुलाये गये। उन्होने परमहंसजी की हालत देखकर निराशा जताई और चलते समय शिष्यों से कहा कि यह रोग संक्रामक है, इस लिए इससे बचते