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स्वामी विवेकानन्द
 


वह एक दर्शनीय दृश्य था। कोलम्बो से अलमोड़ा तक जिस-जिस नगर में आप पधारे, लोगों ने आपकी राह में आँखें बिछा दीं। अमीर-ग़रीब छोटे-बड़े सबके हृदय में आपके लिए एक-सा आदर-सम्मान था। यूरोप में बड़े विजेताओं की जो अभ्यर्थना हो सकती है, उससे कई गुना अधिक भारत में स्वामीजी की हुई। आपके दर्शन के लिए लाखो की भीड़ जमा हो जाती थी, और लोग आपको एक नज़र देखने के लिए मंजिलें तै करके आते थे। क्योंकि भारतवर्ष लाख गया वीता है, फिर भी एक सच्चे सन्त और महात्मा का जैसा कुछ आदर-सम्मान भारतवासी कर सकते हैं और किसी देश में संभव नहीं। यहाँ मन को जीतने और हृदयों को वश में करनेवाले विजेता का देश को जीतने और मानव प्राणियों का रक्त बहानेवाले विजेता से कहीं अधिक आदर-सम्मान होता है।

हर शहर में जनसाधारण की ओर से आपके कार्यों की बड़ाई और कृतज्ञता प्रकाश करनेवाले मानपत्र दिये गये, कुछ बड़े शहरों में तो पन्द्रह-पन्द्रह बीस-बीस मानपत्र तक दिये गये और अपने उनके उत्तर में देशवासियों को देश-भक्तिं के उत्साह तथा अध्यात्म-तत्त्व से भरी हुई वक्तृताएँ सुनाई। मद्रास में आपके स्वागत के लिए १७ आलीशान फाटक बनाये गये। महाराजा रामानन्द ने जिनकी सहायता से स्वामीजी अमरका गये थे, इस समय बड़े उत्साह और उदारिता के साथ अपके स्वागत का आयोजन किया। मद्रास के विभिन्न स्थानों में घूमते और अपने अमृत उपदेशों से लोगों को तृप्त आह्लादित करते हुए २८ फरवरी को स्वामीजी कलकत्ते पधारे। यहाँ आपके स्वागत-अभिनंदन के लिए लोग पहले ही से अधीर हो रहे थे। जिस समय आप को मान पत्र दिया गया, सभा मैं ५ हजार से अधिक लोग उपस्थित थे। राजा विनयकृष्ण बहादुर ने स्वयं मानपत्र पढ़ा, जिसमें स्वामीजी के भारत का गौरव बढ़ानेवाले कार्यों का बखान किया गया था।

कलकत्ते में स्वामीजी ने एक अति पाण्डित्य-पूर्ण भाषण किया। पर अध्यापन और उपदेश में अत्यधिक श्रम करने के कारण आपका