पृष्ठ:कलम, तलवार और त्याग.pdf/५८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कलम, तलवार और त्याग
[ ५६
 


इतिहास, साहित्य और रीति-व्यवहार की अधिक जानकारी प्राप्त की जाय। इसी विचार से बगदाद के खलीफों की तरह उसने भी एक भाषान्तर-विभाग स्थापित कर बीसियों संस्कृत ग्रन्थो का उलथा करा डाला। दाढ़ी मूंडाने, गोमांस और लहसुन प्याज न खाने, और ग़मी के मौकी पर भद्र कराने का उद्देश्य भी यही था कि शासक और शासित के विचारों का भेद मिट जाय। अक़बर भली भाँति जानता था कि वह मुसलमान तो है ही, इसलिए मेल और एकता स्थापित करने के लिए उसको आवश्यकता है तो हिन्दुओं की रीति-भाँति ग्रहण करने की है।

जातियों और धर्मों का बिलगाव-विरोध दूर करने के बाद अकबर ने उन सुधारों की ओर ध्यान दिया जो मानव-समाज की उन्नति के लिए आवश्यक हैं। समाज-संघटन का आधार विवाह-यवस्था है और इस सम्बन्ध में आये दिन झगड़े पैदा होते रहते है जो कुल-कुटुम्ब का नाश कर देते या स्वयं पति-पत्नी के जीवन को मिट्टी में मिला देते हैं। और आरम्भ में ही पूरी सावधानी न बरती जाये तो इनका असर• वर्तमान पीढ़ी से लगाकर आनेवाली पीढ़ी तक पहुँचता है। अकबर नै बड़ी दूरदर्शिता से काम लेकर निश्चय किया कि निकट संबन्धियो में ब्याह न हुआ करे। इसी प्रकार किसी का ब्याह बालिरा होने के पहले या स्त्री उम्र में पुरुष से १२ साल से अधिक बड़ी हो तो भी न हुआ करे। बहुविवाह भी अनुचित बताया गया और इन बातों की निगरानी के लिए यह नियम बना दिया गया कि सब ब्याह सरकारी दफ्तर में लिखे जाया करें। हिन्दुओं की ऊँची जातियों में विधाओं के पुनर्विवाह की प्रथा न होने से समाज-व्यवस्था में जो खराबियाँ पड़ती हैं वे किसी से छिपी नहीं हैं। और यद्यपी ऐसे मामलों में क़ानूनी हस्तक्षेप उचित नहीं है। पर अकबर ने इस विषय में भी बड़ी दूरदर्शिता से काम लिया और यह अति हितकर नियम बना दिया कि अगर कोई विधवा पुनर्विवाह करना चाहे तो उसको रोकना अपराध होगा। इनमें से अधिकतर वह महत्वपूर्ण सुधार हैं, जिनके