पृष्ठ:कलम, तलवार और त्याग.pdf/२९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७ ]
रणजीतसिंह
 


ललकारने लायक बना दिया था। पंजाब के चुने हुए जवान यादों में भरती किये जाते थे और महाराज की यह कोशिश रहती थी कि सेना का यह विभाग अधिक लोकप्रिय हो जाये। सिख पैदल सेना को परिश्रम और कष्टसहन का इतना अभ्यास था कि महीनों तक लगातार रोज २० मील की मजिले़” मार सकती थी। महाराज की संपूर्ण सेना करीब एक लाख थी, और जागीरदारो की मिलाकर सवा लाख।

रणजीतसिंह के राज्य में पंजाब खास, सतलज और सिन्ध के बीच का प्रदेश, काश्मीर, मुलतान, डेराजान, पेशावर और सरहदी जिले शामिल थे। यद्यपि राज्य अधिक विस्तृत न था, पर उसमें हिन्दुस्तान के वह हिस्से शामिल थे जो प्राकृतिक अवस्था की दृष्टि से दुर्गम हैं और जहाँ लड़ाके, साहसी, किसी की अधीनता न जाननेवाले और धोखेबाज लोग बसते हैं। भारत के सम्राटों के लिए यह भू-भाग सदा परेशानियों और कठिनाइयों का भंडार साबित हुआ है। मुग़ल बादशाहो के समय अकसर वहाँ फ़ौज भेजनी पड़ती थी, और यह चढ़ाइयाँ परिणाम की दृष्टि से तो नगण्य होती थीं, पर खर्च और रक्तपात के विचार से बहुत ही महत्वपूर्ण होती थीं। यह प्रदेश जाहिल और कट्टर मुसलमान जातियों से आबाद हैं जो शिक्षा और सभ्यता से बिल्कुल कोरे हैं और जिनके जीवन का उद्देश्य केवल चारी, डाकी और लूट है। और यद्यपि यह भू-खण्ड पचास साल से अँग्रेजी राज्य की मंगलमयी छाया के नीचे है, फिर भी अज्ञान और अन्धकार के उसी गहरे गढ़ में गिरा हुआ है। यह लोग जब मौक़ा पाते हैं, सरहद के हिन्दुओं और वह न मिले तो मुसलमानों पर ही अपनी बर्बरता चरितार्थ कर लेते हैं। रणजीतसिंह को इन जातियों से बहुत नुकसान उठाने पड़े। तजरबेकार अफसर और चुनी हुई पलटने अक्सर इन्हीं सरहदी झगड़ों की नज़र हो जाया करती थीं। यों तो बारहों मास छेड़छाड़ होती रहती थी, पर लेन की वसूली का जमाना दूसरे शब्दों में युद्ध-काल होता था। रणजीतसिंह को अगर दक्षिण दिशा