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कलम, तलवार और त्याग
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और उसकी पुस्तक दस बरस में विस्मृति के गर्त में विलीन हो जायगी, पर आपकी कृति और वाल्टेयर की कीर्ति अमर है।” गोल्डस्मिथ ने बहुत ठीक कहा था। बीटी का अब कोई नाम भी नहीं जानता, पर वाल्टेयर, ह्युम और गिबन के नाम दुनिया में सूर्य की तरह चमक रहे हैं।

रेनाल्ड्स के चित्रों का रंग टिकाऊ न होता था। शोख और भड़कीले रंगों का वह खुद नापसन्द करता था, पर उसके अधिकतर चित्र चट्कीले ही दिखाई देते हैं। इसका कारण सम्भवतः यह है कि इसे अपने ग्राहकों का मन रखना था और उस समय की लोकरुचि चटकीले चित्रों को अधिक पसन्द करती थी। वह अपने रङ्ग-विधान के नियम और विधि किसी को भी न बताता था। प्रिय से प्रिय शिष्यों को भी उसने अपने रंगो का मसाला ने बताया। उसकी यह कृपणता बिल्कुल भारतीय गुणियों की जैसी थी जो अपने गुण और करतब अपने साथ ले जाते हैं। हाँ, वह स्वयं पुराने उस्तादों के रंग- रोगन की विधियों की जाँच-पड़ताल किया करता था। उसने अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा चित्रकला के उत्कृष्ट नमूनों को खरीदने में खर्च किया! उसका संग्रह आज तक मौजूद होता, तो वह इस ललितकला की बहुमुल्य निधि समझा जाता। पर रेनाल्ड्स ने उन्हें शोभा शृङ्गार के लिए न खरीदा था, खोज और अनुसंधान के लिए खरीदा था। एक-एक चित्र को लेकर वह शल्य-चिकित्सक की तरह चीर-फाड़ करता था, जिसमें उसे मालूम हो जाय कि अस्तर किस रंग का है, उस पर कौन रंग दिया गया और कौन-कौन से रंग एक में मिलाये गये थे। इस परीक्षा के बाद तसवीर किसी काम की नहीं रह जाती थी।

रेनाल्ड्स के चित्रों से प्रकट होता है कि वह प्रकृति का बड़ी सुक्ष्म और धार्मिक दृष्टि से निरीक्षण किया करता था। अपनी कला के हीरे विभिन्न खानों से निकालता। कैसी ही तुच्छ सम्मति क्यों न हो, उस पर अवश्य ध्यान देता। बच्चे न मानो उसके शिक्षक ही थे। उसका कथन था कि बच्चों की चेष्टा और अंग-भंगी बनावट से रहित होने