मस्तिष्क के सुन्दर गुणों की बड़ाई कर रहे थे। रेनाल्ड्स के मुंह से निकला---निस्सन्देह यह घटना बड़ी दुःखद है; पर अब बहुत से लोग उपकार के मार से छुटकारा पा गये। उपस्थित जनो को उस की यह
उक्ति बुरी लगी, पर डॉक्टर जानसन बहुत प्रसन्न हुए और लोगों से
कहा कि यह व्यक्ति विचारवान् जान पड़ता है। जब रेनाल्ड्स घर
लौटा तो डाक्टर साहब उसके साथ-साथ आये। इस प्रकार उस
मित्रता का आरंभ हुआ, जो दोनों के जीते जी बड़े प्रेम से निभ गई।
डाक्टर महोदय का स्वभाव रूखा, अभिमानी और कुछ-कुछ अक्खड़
था। उनके जीवन को बड़ा भाग अनादर, अर्थ-कष्ट और एकान्तवास
में कटा था। उँची श्रेणीवाले से साथ न होने के कारण उठने-
बैठने और बात-चीत को तौर-तरीक़ा भी न जानते थे। इस कारण
बड़े आदमियों की मण्डली में उनका अधिक आदर-मान न होता था।
इसमें सन्देह नहीं कि उनके पाण्डित्य की धाक सब पर बैठी हुई
थी। पर उसके साथ ही उनका भौंडा तौर-तरीका, कुरूप चेहरा, मुंहतोड़ उत्तर देने की आदत और बेलाग स्पष्टवादिता उन्हें धनी और
प्रभावशाली पुरुषों के हृदय में स्थान न पाने देती थी। लक्ष्मी के
कुरापात्र विद्या-बुद्धि में छोटे क्यों ही न हों, यह नहीं भूलते कि हम
रईस हैं। वह चाहते है कि विद्वान हो या गुणी, अब प्रार्थी बनकर
आये तो खुशामद और नाज़-बरदारी का सामान साथ लेता आये।
डाक्टर जानसन के स्वभाव में यह बात न थीं। वह जब उनकी
मण्डली में आते तो मुस्कराकर और सिर झुकाकर आदर की प्रार्थना
न करते थे, किन्तु सम्मान को अपनी योग्यता का पुरस्कार' समझते
थे। और ज्यों-ज्यों दिन बीतते गये और उनकी विद्वत्ता और
विचारशीलता का परिचय लोगों को मिलता गयो, त्यों-त्यों उनमें
झल्लापन और कटुभाषिता के दोष होते हुए भी छोटे-बड़े सभी उनके
सामने श्रद्धा से सिर झुकाने को बाध्य हुए।
इसके विपरीत रेनाल्ड्स स्वभावतः हँसमुख और मिलनसार था आवश्यकता-वस ऊँची श्रेणी की रहन सहन का अनुसरण करता