आवश्यकता है। कौन नहीं जानता कि अनभ्यस्त दृष्टि सच्चे और
झूठे मोती, काँच के टुकड़े और हीरे में कठिनाई से विभेद कर सकती
है। यह साधारण बात है कि एक गँवार अरसिक व्यक्ति ऊँचे से ऊंचे
पहाड़, सुन्दर से सुन्दर झील और अद्भुत से अद्भुत उद्यान से वैसे ही
उदासीन रहता है, जैसे सूखी रोटी और झोंपड़े से प्रभात की सुनहरी
छटा, चाँदनी रात की मनोहारिता, नदीकूल का प्राणपोषक समीर, दूर्वादल की मखमली हरियाली, उसके लिए साधारण अर्थरहित बातें हैं। उसको इनके सौंदर्य की अनुभूति ही नहीं, यद्यपि यही वस्तुएँ हैं जो
एक संस्कृत रुचिवाले को आनन्द-विभोर कर सकती है।
रेनाल्ड्स ने इन चित्रों के गुणों और विशेषताओं की बड़े विस्तार से विवेचना की है। कहीं उनके रंग-विधान के रहस्यों का उद्घाटन किया है। कहीं विभिन्न चित्रकला-विशारदों की विशेषताओं की तुलना है। इटली में चित्रकारों के कई रंग था शैलियाँ है। रोम, वेनिस, फ्लोरेंस, मिलान, प्रत्येक भिन्न-भिन्न रंग का केन्द्र है। रैनाल्ड्स ने हर एक रंग की छवियों और बारीकियों की विस्तार से विवेचना की हैं। पर स्वयं किसी रंग का अनुसरण नहीं किया। चित्रकार को अपनी तुलना और निरीक्षण की शक्तियों पर खूब जोर डालना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि अपने चित्रों के लिए वह दूसरों की पुस्तकों से नियम ढूंढ़े। चित्रों के अवलोकन और समीक्षा से उसे अपने नियम आप निकाल लेने चाहिए। नियम चित्रों से बनाये गये हैं, न कि चित्र नियमों से। रेनाल्ड्स कहता है--चूंकि नक़ल करने में दिमाग़ को कुछ मेहनत नहीं करनी पड़ती, इसलिए धीरे-धीरे उसका ह्रास हो जाता है और उपज तथा मौलिक कल्पना की शक्तियाँ, जिनको खास तौर से काम में लाना चाहिए, इस अभ्यास के कारण नष्ट हो जाती हैं। इटली में वह तीन साल रहा, और हर रंग और हर ढंग के चित्रों और चित्र-संग्रहों का अध्ययन की दृष्टि से देखा। परन्तु इंगलैण्ड लौटकर उसने चित्रकला के जिस अङ्ग से अपनाया, वह था शबीहनिगारी अथवी आकृति-चित्रण। इसका एक