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कलम, तलवार और त्याग
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लोकप्रिय हुई। परन्तु काव्यकला के पण्डित थे और उस पर अकसर भाषण किया करते थे।

अन्तिम उपन्यास 'नेकी का फल' लिखा था जो मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ। इस नाम से आपके महाप्रस्थान का सुन्दर अर्थ निकलता है।

विधि-विधान की विचित्रता को देखिए कि सन् १९२६ ई० को विदा करते हुए अपनी ही लेखनी से अपनी निधन-वार्ता ‘दिलगुदाजु, के पन्नो पर लिखते हैं, और यह नहीं सोचते कि मैं वर्ष का वर्णन नहीं किन्तु अपनी हालत लिख रहा हूँ, लिखते हैं-

“इतनी ही थोड़ी मुद्दत में उसने बचपन की नादानियाँ, जवानी की उमंगे और बुढ़ापे की पुख्ताकारियाँ सब देख लीं और अब पाँच-छः रोज का मेहमान है।

क्या मालूम था कि सचमुच यह लिखने के पाँच-छः रोज़ के बाद मौलाना बीमार हो जायँगे और एक सप्ताह भी रोग-शय्या पर रहना न बदा होगा।