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'सर सैयद अहमद खाँ'

‘क्या राजनीतिज्ञ रूप में, क्यों सहित्य-सेवी रूप मैं, क्या मौलिक नेता तथा सुधारक रूप में और क्या जातिसेवक रूप में, सर सैयद अहमद को जो अमरकीर्ति प्राप्त है, वह भारत की इसलामी दुनिया में शायद ही किसी अन्य पुरुष को प्राप्त हो। हममें से हर एक का कर्तव्य है कि इस श्रद्धेय पुरुष के जीवन-वृत्तान्त का ध्यानपूर्वक अध्ययन करे और इसकी खोज करे कि उनमें वह कौन से गुण थे, जिनकी बदौलत वह इतनी मान-प्रतिष्ठा प्राप्त कर सके और जाति की इतनी सेवा कर सके। इनकी अंग्रेजी की योग्यता बहुत मामूली थी, वह घर के मालदार न थे, जाति में भी उनके समर्थकों की संख्या उनके विरोधियों से अधिक न थी। पर इन बाधाओं के होते हुए भी साहित्य-संसार और कर्म-क्षेत्र दोनों में वह अपना नाम अमर कर गये। यह केवल जाति-सेवा का उत्साह था, जिसने सारी कठिना- इयों पर विजय प्राप्त की थी।

सैयद अहमद खाँ ७ अक्टूबर, सन् १८९७ ई० को दिल्ली में पैदा हुए। इनकी शारीरिक शक्ति लड़कपन मैं भी असाधारण थी, और बौद्धिक दृष्टि से उनकी गणना साधारण विद्यार्थियों में ही थी। उस समय कौन यह निश्चय रूप से कह सकता था कि एक समय आयेगा जब यह बालक अपने देश और जाति के लिए गर्व का कारण होगा। उनकी पढ़ाई भी साधारण मुसलमान बच्चों की तरह कुरान शरीफ़ से शुरू हुई। उनकी उस्तानी एक भले घर की परदानशीन महिला थीं। इससे प्रकट होता है कि उस जमाने में भी शरीफ़ घरानों मैं बर्थों की शिक्षा नियों ही को सौंपी जाती थी। आज यूरोप से आरंम्भिक