उपनिषद् आपके जीवन की पथ-प्रवर्शक ज्योतियाँ हैं। यही आपके आध्यात्मिक समाधान और वित्त-शुद्धि के साधन हैं। मूर्तिपूजा में
आपको विश्वास नहीं। वेदों, उपनिषदों या भगवद्गीता में आपको
मूर्तिपूजा का कोई प्रमाण नहीं मिलता। बहुत खोज के बाद आपने
यह निष्कर्ष निकाला है कि हिन्दुओं ने यह प्रथा जैन और बौद्ध
सम्प्रदायों से ली है। जैन और बौद्ध यद्यपि सगुण ईश्वर को नहीं
मानते, पर विद्वज्जनों और सन्त-महात्माओं के देहावसान पर
स्माकर रूप में उनकी प्रतिमा स्थापित किया करते थे। हिन्दुओं ने
उन्हीं से यह रीति ली और उसी ने अब प्रतिमा-पूजन का रूप ग्रहण
कर लिया है। फिर भी बहुत-से शिक्षित हिन्दु मूर्तिपूजा पर ऐसे
लट्टू, हैं और उस पर उनका ऐसा दृढ़ विश्वास है मानो यही हिन्दू-
धर्म का प्राण हो। सामाजिक विषयों में आप सुधारवादी हैं और
व्यवहारतः इसका प्रमाण दे चुके हैं। मई सन् १८९१ ई० में अपने
अपनी विधवा लड़की का पुनर्विवाह कर अपने नैतिक साहस का
परिचय दिया, जो अपने देश के सुधारवादियों में एक दुर्लभ गुण है।
जिस जाति में ऐसी महान् आत्माएँ जन्म लेती हैं उसका भविष्य
उज्ज्वल है, इसमें संदेह नहीं किया जा सकता।
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डा० सर रामकृष्ण भांडारकर