डाक्टर भांडारकर इस उश्च पद पर नियुक्त किये गये। कई अंग्रेज़
विद्वानों के मुक़ाबले उन्हें तरजीह दी गई। भारत में वही इस पद के.
सबसे बड़े अधिकारी थे। अपनी सहज तत्परता और एकाग्रता के
साथ वह इस काम में जुट गये, और संस्कृत, प्राकृत तथा आधुनिक
भाषाओं पर उन्होंने जो व्याख्यान दिये वह गंभीर गवेषण और
ऐतिहासिक खोज की दृष्टि से बहुत दिनों तक याद किये जायँगे।
उनकी तैयारी में डाक्टर भांडारकर को कठोर श्रम करना पड़ा, पर
ऐसी सेवाओं का जो अच्छे से अच्छा पुरस्कार हो सकता है वह हाथ
आ गया। विद्वानों ने दिल खोलकर दाद दी और सरकार को भी
जल्दी ही अपनी गुणज्ञता का सक्रिय रूप में परिचय देने का अवसर
मिल गया। कुछ दिनों से यह विचार हो रहा था कि प्राचीन अप्रकाशित संस्कृत ग्रन्थों की खोज की जाय और उनका संग्रह ऐतिहासिक
खोज और समीक्षा के लिए विद्वानों के सामने रखा जाय। क्योंकि
ऐतिहासिकों का विचार था कि भारत में प्राचीन काल का इतिहास
तैयार करने के मसाले की कमी नहीं है। वह जहाँ-तहाँ पुराने खण्डहरों और निजी पुस्तकालयों में, आपत्काल में आत्मरक्षा के लिए
छिपा पड़ा है। उसके अध्ययन से उस समय के इतिहास पर बहुत
कुछ प्रकाश पड़ सकता है। पर इन साधनों को ढूंढ़ निकालना सहज
काम न था। यह गुरुकार्य डाक्टर भांडारकर को सौंपा गया है और
उन्होंने जिस योग्यता के साथ उसका संपादन किया उसकी जितनी
भी सराहना की जाय, कम होगी। केवल बहुसंख्यक अप्रकाशित ग्रंथ
और लेख ही हूँ; नहीं निकाले, उन पर विस्तृत गवेषणापूर्ण रिपोर्ट
भी लिखी जो पाँच बड़ी-बड़ी जिल्दों में पूरी हुई है। इस क्षेत्र में
डाक्टर भांडारकर ने दूसरों के लिए रास्ता बताने और दिखाने का
भी काम किया। उनके श्रम से औरों के लिए ऐतिहासिक अन्वेषण
का रास्ता साफ हो गया। इस काम में उन्हें कैसी-कैसी बाधाओं का
सामना करना पड़ा, इसे विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं।
इस देश में जिस आदमी के पास भी कोई पुरानी पोथी है, चाहे वह
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कलम, तलवार और त्याग
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