गेरीबाल्डी को रोकने के लिए सेना भेजी। वह अपने देशवासियों से
लड़ना न चाहता था। जहाँ तक हो सका बचता रहा, पर अन्त में घिर
गया। और युद्ध अनिवार्य हो गया। संभव थी कि वह यहाँ से भी
साफ़ निकल जाता, पर कई ऐसे गहरे घाव लगे कि लाचार हो घर लौट आया और कई महीने तक खाट सेता रहा।
सन् १८६४ ई० में गेरीबाल्डी इंगलैण्ड की सैर को गया। यहाँ जिस धूमधाम से उसका स्वागत किया गया, जिस ठाट से उसकी सवारी निकली, सम्राटों के आगमन के अवसरों पर भी वह मुशकिल से दिखाई दे सकती है। जो भीड़ गली-कूचों और खास ख़ास जगहो पर उसके दर्शन के लिए इकट्ठी हुई, वैसा जनसमुद्र कभी देखने में नहीं आया। यहाँ वह १० दिन तक रहा। सैकड़ों संस्थाओं ने मानपत्र दिये। कितने ही नगरों ने तलवारें और उपाधियाँ भेंट की। २२ अप्रैल को वह फिर अपने जज़ीरे को लौट आया।
इसी बीच आस्ट्रिया और प्रुशिया में युद्ध छिड़ गया। गेरीबाल्डी ने शत्रु को उधर फँसा देखकर अपनी उद्देश्य सिद्धि के उपाय सोच लिये। ११ जून १८६६ ई० का वह अचानक जिनेवा में आ पहुँचा और आस्ट्रिया के विरुद्ध विश्व खड़ा कर दिया। पर पहली ही लड़ाई में उसकी रान मैं ऐसा गहरा घाव लगा कि उसके योद्धाओ को पीछे हटना पड़ा। घाव भर जाने के बाद उसने कोशिश की कि फ्रांस के राज्य में चला जाय और उधर से शत्रु पर हमला करे। पर आस्ट्रिया की सेना ने यहाँ उसे फिर रोका और बड़ा घमासान युद्ध हुआ जिसमें विपक्ष ने करारी हार खाई। चुँकि आस्ट्रिया के लिए अकेले प्रुसिया से ही निबटना आसान न था, इसलिए दक्षिण के युद्ध की अपेक्षा उत्तर की ओर ध्यान देना उसे अधिक आवश्यक जान पड़ा। अतः सुलह की बातचीत होने लगी और युद्ध की शुभ समाप्ति हुई। सुदीर्घ काल के बाद वेनिसवालों की कामना पूर्ण हुई और वह भी इटली का एक प्रान्त बन गया