न मिली। लाचार वहाँ ने लिवरपूछ (इंगलैड) आया और वहाँ से संयुक्त राष्ट्र अमरीका की राह ली। वहाँ कोई और उद्द्म न पाकर उसने एक ब्रिटिश साबुन के कारखाने में नौकरी कर ली। आश्चर्य है।
कि ऐसे-ऊँचे विचार और आकांक्षा रखनेवाले पुरुष की ऐसे छोटे धंधे
की ओर क्योंकर प्रवृत्ति हुई। संभवतः जीविका की आवश्यकता ने
विवश कर रखा होगा, क्योंकि उसकी आर्थिक अवस्था बहुत ही हीन
हो रही थी। कुछ दिन यहाँ बिताने के बाद उसने एक जहाज़ की
नौकरी कर ली और अरसे तक चीन, आस्ट्रेलिया अदि में नाविक की
कार्य करता रहा। कई साल तक इस प्रकार भटकने के बाद एक बार
न्यूकैसल आया। यहाँ जनता ने बड़े हर्षोल्लास से इसका स्वागत
किया और एक तलवार और एक दूरबीन उसे भेंट की। उस अवसर
पर किये गये भाषण के उत्तर में गेरीबाल्डी ने कहा-
'अमर तुम्हारे देश ग्रेट ब्रिटेन को कभी किसी सहायक की आवश्यकता हो तो ऐसा कौन अभागा इटालियन है जो मेरे साथ उसकी मदद को तैयार न हो जाय। तुम्हारे देश ने आस्टट्रियावालों को वह चाबुक लगाया है जिसे वह कभी भूल न सकेंगे। अगर इंगलैण्ड को कभी किसी जायज मामले में मेरे शन्नों की आवश्य- कता पड़े तो मैं उस बहुमूल्य तलवार को जो तुमने मुझे उपहार रूप में दिया है, बड़े गर्व के साथ स्थान से बाहर केहँगा।
पेडमांट के राज्य में अब शान्ति स्थापित हो चुकी थी, इस लिए गैरीबाल्डी से कचरेरा नामक टापू खरीद लिया और उसे बसाकर खेती का धन्धा करने लगा। खेती की पैदावार को आस-पास के बाजारों में ले जाकर बेचा करता था। वह तो यहाँ बैठा हुआ खेती-बारी में उत्साह से लग रहा था, उधर इटली की अवस्था में बड़ी तेजी से परिवर्तन हो रही थी। यहाँ तक कि अस्ट्रिया के अत्याचारों से ऊबकर पेडमांद की सरकार ने फ्रांस की सहायता से इसके साथ युद्ध की घोषणा कर दी। अब गेरीबाल्डी की आवयकता अनुभव की गई, और प्रधान मन्त्री केयूर ने अप्रैल