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राणा प्रताप
 


सम्मान के साथ लेते, माथे चढ़ाते और प्रसाद-वत् भोजन करते थे। इसी वज्र-सी दृढ़ता ने राणा को राजस्थान के संपूर्ण राजाओं की निगाह में हीरो-आदर्श वीर बना दिया। जो लोग अकबर के दरबारी बन गये थे, वह भी अब राणा के नाम पर गर्व करने लगे। अकबर जो प्रकृति के दरबार से वीरता और मर्दानगी लेकर आया था, और बुहादुर दुश्मन की क़द्र करना जानता था, खुद भी अपने सरदारों से प्रताप की वीरता और साहस की सराहना करता। दरबार के कवि राणा की बड़ाई में पद्य रचने लगे। अब्दुर्रहीम खान-खानाँ ने, जो हिन्दी-भाषा में बड़ी सुन्दर कविता करते थे, मेवाड़ी भाषा में राणा की वीरता का बखान किया। ॱॱॱवाह! कैसे गुणज्ञ और उदारहृदय लोग थे कि शत्रु की वीरता को सराहकर उसका दिल बढ़ाते और हौसले उभारते थे।

पर कभी-कभी ऐसे भी अवसर आ जाते कि अपने कुटुम्बियो, प्यारे बच्चों के कष्ट उससे न देखे जाते। उस समय उसका दिल बैठ जाता और अपने हाथ छाती में छूरी भोंक लेने को जी चाहता। शाही फ़ौज ऐसी घात में लगी रहती कि पका हुआ खाना खाने की नौबत न आती। भोजन के लिए हाथ-मुँह धो रहे हैं कि जासूस ने खबर दी—शाही फ़ौज आ गई, और तुरंत सब छोड़ छाड़ भागे। एक दिन राणा एक पहाड़ी दरें में लेटा हुआ था। रानी और उसकी पुत्रवधू कन्दमूल की रोटियाँ पका रही थी। बच्चे खाना पाने की खुशी में इधर-उधर कुलेलें करते-फिरते थे, आज पाँच फ़ाके गुज़र चुके थे। राजा न जाने किस विचार-सागर में डूबता-उतराता बच्चों की चेष्टाओं को निराशा-भरी आँखों से देख रहा था। हा! यह वह बच्चे हैं जिनको मखमली गद्दों पर नींद न आती थी, जो दुनिया की नियामतों की ओर आँख उठाकर न देखते थे, जिनको अपने बेगाने सभी गोद की जगह सिर-आँखों पर बिठाते थे, आज उनकी यह हालत है कि कोई बात नहीं पूछता, न कपड़े, न लत्ते, कन्दमूल की रोटियों की आशा पर मगन हो रहे हैं और उछल-कूद रहे हैं। वह इन्हीं दिल