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१२७ ] गेरीबाल्डी


पीठ पर सिर नीचा कर लेता। अधिक अवकाश हुआ तो वहीं ज़मीन पर लम्बा हो जाता। इससे भी सराहनीय अनीता का धैर्य और दृढ़ता है जो पति की खातिर यह सारी विपत्तियाँ और क्लेश झेलती और शिकायत में मुँह से एक शब्द न निकालती।

यद्यपि 'यंग इटाली’ (इटालियन युवक दल) और उसके अधिक तर सदस्य जिनमें मेजिनी भी शामिल था, निर्वासन के कष्ट भोग रहे थे, पर उनके विचार गुप्त परचों आदि के द्वारा जनसाधारण के हृदय में स्वाधीनता को प्रेम जगाते जाते थे। कई बार साधारण रूप में प्रकट होने के बाद अन्त में १८४८ ई० में यह जोश भड़क उठा। कई नगरों में जनता ने आजादी के झण्डे ऊँचे कर दिये। मिलान और जिनोवा में अस्ट्रिया की सेना ने हार भी खाई। पेडमांट के शासक शाह अलबर्ट ने पहले तो आस्ट्रिया के विरुद्ध किये गये इस विप्लव को बड़ी कड़ाई से दबा देने की कोशिश की; पर जब उसमें सफल न हुआ और जनता का जोश घटता ही गया; तो इस डर से कि कहीं उसकी प्रजा भी उपद्रव पर उद्यत न हो जाय, छिपे-छिपे बागियों की मदद करने लगा। पोप ने भी इसी में भलाई देखी कि प्रज्ञा का विरोध न किया जाय। इस विपल्व के दिल बढ़ानेवाले समाचार समुद्र को पार करके अमरीका पहुँचे तो उस परदेश में पड़े हुए देशभक्त के हृदय में फिर देशसेवा की उमङ्ग लहरें लेने लगी। उसके साथ उस समय ८३ आदमियों से अधिक न थे, इसी छोटे-से दल को लेकर वह स्वदेश के स्वाधीनता-संग्राम में जूझने को रवाना हो गया। प्रस्थान के समय उन ८३ 'आदमियों में से भी बहुतों की हिम्मत छुट गई और वे सोचने लगे कि कहाँ हम और कहाँ अस्ट्रिया और अन्य यूरोपीय राज्यों की संयुक्त शक्ति। अन्त में केवल ५६ आदमी बच रहे। पर गेरीबाल्डी का हौसला दबना जानता ही न था। उसका दृढ़ संकल्प तनिक भी विचलित न हुआ। उन्हीं ५६ आदमियों और थोड़ी-सी बन्दूकों के साथ वह एक जहाज़ पर इटली के लिए रवाना हो गया। यहाँ जिस उत्साह और उल्लास से उसका स्वागत किया गया, वह इस बात का