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श्री गोपाल कृष्ण गोखले
 


है। अंग्रेजी अखबारों ने भी हल्ला मचाना शुरू किया और प्रतिहिंसा के आवेश में ईश्वर जाने क्या-क्या लिख डाला। किसी ने सलाह दी--हिन्दुस्तानी अखबारों की धज्जियाँ उड़ा दो। किसी ने कहा-पूने की ईंट ईंट से बजा दो। भारतीय पत्रों का साहस भी सराहनीय है कि वह सच कहने से न चुके; अंग्रेजों को खूब तुक-बेतुकी जवाब दिया। नतीजा यह हुआ कि सरकार ने कुछ देश-भक्तों के रक्त से अपने क्रोध की आग ठंडी की। ऍग्लोइंडियन समुदाय ने घी के चिराग जलाये, खुशी मनाई और सरकार के अति कृतज्ञ हुए।

मिस्टर गोखले अभी इंगलैंड में ही थे कि उनके मित्रों ने भारत (बंबई ?) सरकार के अत्याचार-उत्पीड़न के दिल हिला देनेवाले विवरण पूने से लिख-लिखकर भेजना आरंभ कर दिये। उनको आशा थी कि आप इङ्गलैंड में सरकार की इन अनुचित कार्रवाइयों को मशहूर करके उनकी ओर पार्लमेन्ट का ध्यान खींच सकेंगे। अपने देश- वासियों की यह दुर्दशा ऐसे देशभक्त के जो देश पर तन-मन बार चुका हो --जोश को न उभारे, यह असंभव था। फिर भी आपने बड़े धैर्य और संयम से काम लिया। आप भली-भाँति जानते थे कि सरकार पर यह इलज़ाम लगाने के लिए सबूत जुटाना असंभव हो जायगा और इन घटनाओं को प्रकट करने के पूर्व अपने बड़े सोच विचार से काम लिया। पर इसी बीच रैंड और आय की हत्या का भयावना समाचार पहुंचा और उसने ब्रिटिश जनता में अजीब हलचल मचा दी। भारतियों को दण्ड देने के उपाय सोचे जाने लगे। अफवाह उडी की पूने के २५ प्रतिष्ठित और प्रभावशाली जन फाँसी पर लटका दिये जायँगे। इसी प्रकार के और भी आतंक-जनक समाचार जो.सर्वथा निराधार थे, प्रसिद्ध हुए।

अब आपसे जब्त न हो सका और आवश्यक हो गया कि आप भी अपनी आवाज उठायें। अतः आपने उन पत्रों के आधार पर जो पूने से आपके मित्रों ने लिखे थे, सरकार की अनुचित कठोरता और अत्याचार की जोरदार शब्दों में घोषणा की और यह साबित करते की