अधिक उपयुक्त व्यक्ति और कौन हो सकता था। एक सज्जन का कथन है कि 'मिस्टर गोखले एक राष्ट्रीय मीरास है जो स्वर्गीय रानाडे ने, देश को प्रदान किया है। और यह कथन सर्वथा सत्य है। इससे कौन इनकार कर सकता है कि आप अपने गुरु के रंग में नख से शिखतक, डूबे हुए थे। एक भाषण मैं स्वयं सगर्व कहा था कि “मुझे १२ वर्ष तक उस महामति की शिष्यता का गौरव प्राप्त रहा और इस बीच मैंने उनके उपदेशों से अमिते लाभ उठाया। इन शब्दों में कितनी , श्रद्धा भरी है, यह बताने की आवश्यकता नहीं। धन्य हैं वह देवोपम गुरु और गुणशाली शिष्य। आज मिस्टर रानडे की आत्मा स्वर्ग में अपने शिष्य की निःस्वार्थ देश-सेवा को देखकर आनंद में झूम रहीं
होगी। मिस्टर गोखले को देश के आर्थिक तथा राजनीतिक प्रश्नो
पर जो असाधारण अधिकार प्राप्त था, वह उसी महानुभाव के
सत्संग का प्रसाद था। इस १२ वर्ष के शिष्यत्व में आपने कितनी ही
आर्थिक रिपोर्टों और पत्रो के खुलासे किये जो संशोधन के लिए श्रीयुत
रानडे की सेवा में उपस्थित किये जाते थे। और इसमें कोई संदेह है।
कि उनके सशोधन श्रद्धावान् शिष्य के लिए आफत का सामान हो
जाते थे! वह उसी कठिन साधना की सुफल था कि सरकारी आर्थिक
रिपोर्टों की भूल-भुलैया को कोई चीज न समझते थे और चुटकी
बजाते दूध का दूध, पानी का पानी अलग करके दिखा देते थे।
मिस्टर रानडे का सान्निध्य प्राप्त करने से आपको केवल यही लाभ नहीं हुआ कि आपको देश के उपस्थित प्रश्नों का मार्मिक ज्ञान हो गया, किंतु दिन-रात के साथ ने आपके हृदय पर भी अपने गुरु की श्रम-शीलता, दृष्टि की व्यापकता, विचारों की उदारता, निष्पक्षता, विवेचना-शक्ति और सचाई की ऐसी गहरी छाप डाल दी कि ज्यो-ज्यों दिन बीते, वह मिटने के बदले और उभरती गई। आठ बरस तक अपने शिक्षण कार्य करने के अतिरिक्त सार्वजनिक सभा के पत्र ‘ज्ञानप्रकाश’ को मिस्टर रानडे के तत्वावधान में बड़ी योग्यता से चलाया। आपके मत ऐसे प्रौढ़ और पके होते थे और आपके लेखों में वह सजीवता, नवीनता