कर दिखा देते। जब यह बला सिर से टल जाती तो फिर वही ढर्रा
पकड़ लेते। टोडरमल ने इसका भी प्रतीकार किया कि जाँच के समय
घोड़ों पर दाग़ लगा दिया जाता जिसमें धोखेबाजी की कोई मौक़ा न रहे।
सिकन्दर लोदी के जमाने तक हिन्दू लोग आम तौर से फ़ारसी या अरबी में पढ़ते थे, इन्हें 'स्लेच्छ-विद्या' कहते थे। टोडरमल ने प्रस्ताव किया कि संपूर्ण भारत-साम्राज्य के सब दफ्तर फ़ारसी में हो जायँ। पहले तो हिन्दू इस योजना से चौंके, पर टोडरमल ने उनके दिलो में यह बात अच्छी तरह बैठा दी कि राजा की भाषा जीविका की कुंजी है। ऊँचे पद, अधिकार और सम्मान चाहते हो तो भाषा को सीखकर पा सकते हो, अकबर ने भी सहारा दिया, योजना चल निकली और कुछ ही साल के अरसे में बहुत-से हिन्दू फारसी-दाँ हो गये। इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि दोडरमल उर्दू भाषा का •पूर्व-पुरुष है, क्योंकि यह उसी की दूरदर्शिता का फल है कि हिन्दुओं में फ़ारसी का चलन हुआ। फारसी शब्द मामूली घरेलू बोल-चाल में प्रयुक्त होने लगे, और इस प्रकार रेखते * से उर्दू की जड़ मजबूत हुई।
टोडरमल गणना-शास्त्र-- हिसाब-किताब की विद्या में अपने समय का सर्वमान्य आचार्य था। पहले शाही गणना-विभाग बिल्कुल अव्यव्स्थित थी। कहीं काराज्यात फारसी में थे, कहीं हिन्दी मे। टोडरमल ने इस अस्त-व्यस्त स्थिति को भी नियम-व्यवस्था की शृंखला ल में बाधा। यद्यपि इस संबन्ध में ख्वाजाशाह मंसूर, मुजफ्फर खाँ और असिफ खाँ ने भी बड़े-बड़े काम किये, पर टोडरमल की कीर्ति की चमक दमक के सामने उनका कुछ मूल्य न रहा व। बहुत से नक़्शे और तालिकाओं के नमूने 'आईने अकबरी' में दर्ज हैं, आज भी उन्ही की खानापुरी की जाती है। यहाँ तक कि सांकेतिक शब्दावली में भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
- उर्दू का पहला नाम जिसका अर्थ है- मिली-जुली खिचड़ी भाषा, क्युकी उर्दू भाषा अरबी, फारसी, तुर्को हिन्दी आदि शब्दों की खिचड़ी है।