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ने ही यह प्रस्ताव पास किया, तो तुमने इसे क्यों मान लिया ? इसका उसके पास कोई जवाब न था।

एक क्षण के बाद डाक्टर साहब घड़ी देखते हुए बोले--आज इस लौंडे पर ऐसा गुस्सा आ रहा है, कि गिनकर पचास हंटर जमाऊँ ? इतने दिनों तक इस मुकदमे में सिर पटकता फिरा, और आज जब फैसले का दिन आया तो लड़के का जन्मोत्सव मनाने बैठा रहा। न जाने हम लोगों में अपनी जिम्मेदारी का खयाल कब पैदा होगा। पूछो, इस जन्मोत्सव में क्या रखा है। मर्द का काम है, संग्राम में डटे रहना, खुशियाँ मनाना तो विलासियों का काम है। मैंने फटकारा, तो हँसने लगा। आदमी वह है जो जीवन का एक लक्ष्य बना ले और जिन्दगी-भर उसके पीछे पड़ा रहे। कभी कर्तव्य से मुंह न मोड़े! यह क्या कि कटे हुए पंतग की तरह जिधर हवा उड़ा ले जाय, उधर चला जाय। तुम तो कचहरी चलने को तैयार हो ? हमें और कुछ नहीं करना है। अगर फैसला अनुकूल है, तो भिखारिन को जुलूस के साथ गंगा-तट तक लाना होगा; वहाँ सब लोग स्नान करेंगे और अपने घर चले जायेंगे। सजा हो गयी, तो उसे बधाई देकर बिदा करना होगा। आज ही शाम को 'तालीमी इसलाह' पर मेरी स्पीच होगी। उसकी भी फिक्र करनी है। तुम भी कुछ बोलोगे?

सलीम ने सकुचाते हुए कहा--मैं ऐसे मसले पर क्या बोलूँगा ?

'क्यों, हर्ज क्या है। मेरे खयालात तुम्हें मालूम है। यह किराये की तालीम हमारे कैरेक्टर को तबाह किये डालती है। हमने तालीम को भी एक व्यापार बना लिया है। व्यापार में ज्यादा नफा होगा। तालीम में ज्यादा खर्च करो, ज्यादा ऊँचा ओहदा पाओगे। मैं चाहता हूँ, ऊँची-से-ऊँची तालीम सबके लिए मुआफ़ हो; ताकि ग़रीब-से-ग़रीब आदमी भी ऊँची-से-ऊँची लियाकत हासिल कर सके और ऊँचे-से-ऊँचे ओहदा पा सके। युनिवर्सिटी के दरवाजे मैं सबके लिये खुले रखना चाहता हूँ। सारा खर्च गवर्नमेंट पर पड़ना चाहिए। मुल्क को तालीम की उससे कहीं ज्यादा जरूरत है, जितनी फौज की।'

सलीम ने शंका की--फौज न हो, तो मुल्क की हिफाजत कौन करे ?

डाक्टर साहब ने गंभीरता के साथ कहा--मुल्क की हिफाजत करेंगे हम और तुम, मुल्क के दस करोड़ जवान, जो अब भी बहादुरी और हिम्मत

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कर्मभूमि