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उसका सम्मान करती, लेकिन इन फाके़मस्तों का यह उत्साह देखकर उसकी आँखें खुल गयीं। बोला---चन्दे की तो अब ज़रूरत नहीं है अम्मा ! रुपये की कमी नहीं है। तुम इसे खर्च कर डालना। हाँ, चलो मैं उन लोगों से तुम्हारी मुलाकात करा दूं।

सकीना का उत्साह ठंडा पड़ गया। सिर झुकाकर बोली--जहाँ ग़रीबों के रुपये नहीं पूछे जाते, वहाँ गरीबों को कौन पूछेगा। वहाँ जाकर क्या करोगी अम्मा ! आयेगी तो यहीं से देख लेना।

अमरकान्त झेंपता हुआ बोला--नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है अम्मा, वहाँ तो एक पैसा भी हाथ फैलाकर लिया जाता है। गरीब-अमीर की कोई बात नहीं है। मैं खद गरीब हूँ। मैंने तो सिर्फ इस ख्याल से कहा था कि तुम्हें तकलीफ होगी।

दोनों अमरकान्त के साथ चली, तो रास्ते में पठानिन ने धीरे से कहा--मैंने उस दिन तुमसे एक बात कही थी बेटा ! शायद तुम भूल गये।

अमरकान्त ने शर्माते हुए कहा--नहीं-नहीं मुझे याद है। जरा आज-कल इसी झंझट में पड़ा रहा। ज्यों इधर से फ़ुरसत मिली, मैं अपने दोस्तों से जिक्र करूँगा।

अमरकान्त दोनों स्त्रियों का रेणुका से परिचय कराके बाहर निकला, तो प्रो० शान्तिकुमार से मुठभेड़ हुई। प्रोफ़ेसर ने पूछा--तुम कहाँ इधर-उधर घूम रहे हो जी ? किसी वकील का पता नहीं। मुकदमा पेश होने वाला है। आज मुलज़िम का बयान होगा, इन वकीलों से खुदा समझे। जरा सा इजलास पर खड़े क्या हो जाते हैं, गोया सारे संसार को उनकी उपासना करनी चाहिए। इससे कहीं अच्छा था, कि दो-एक वकीलों को मेहनताने पर रख लिया जाता। मुफ़्त का काम बेगार समझा जाता है। इतनी बेदिली से पैरवी की जा रही है, कि मेरा खून खौलने लगता है। नाम सब चाहते हैं, काभ कोई नहीं करना चाहता। अगर अच्छी जिरह होती तो पुलिस के सारे गवाह उखड़ जाते। पर वह कौन करता। जानते हैं कि आज मुलजिमों का बयान होगा, फिर भी किसी को फ़िक्र नहीं।

अमरकान्त ने कहा--मैं एक-एक को इत्तला दे चुका। कोई न आये तो मैं क्या करूँ।

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कर्मभूमि