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है; मैं तुमसे सच कहता हूँ। जिसने कभी झूठों मुझसे नहीं पूछा, तुम्हारा जी कैसा है, वह उनकी बीमारी की खबर पाते ही बेक़रार हो जाय, यह बात समझ में नहीं आती। उनकी दौलत उसे खींच ले जाती है, और कुछ नहीं। मैं अब इस नुमाइश की जिन्दगी से तंग आ गया हूँ सकीना। मैं सच कहता हूँ, पागल हो जाऊँगा। कभी-कभी जी में आता है, सब छोड़-छाड़कर भाग जाऊँ, ऐसी जगह भाग जाऊँ, जहाँ लोगों में आदमियत हो। आज तुम्हें फ़ैसला करना पड़ेगा सकीना। चलो, कहीं छोटी-सी कुटी बना लें और खुदग़रजी की दुनिया से अलग मेहनत-मजदूरी करके जिन्दगी बसर करें। तुम्हारे साथ रहकर फिर मुझे किसी चीज़ की आरजू नहीं रहेगी। मेरी जान मुहब्बत के लिए तड़प रही है, उस मुहब्बत के लिए नहीं, जिसकी जुदाई में भी विसाल है बल्कि जिसकी विसाल में भी जुदाई है। मैं वह मुहब्बत चाहता हूँ, जिसमें ख्वाहिश है, लज्ज़त है। मैं बोतल की सुर्ख शराब पीना चाहता हूँ, शायरों की खयाली शराब नहीं।'

उसने सकीना को छाती से लगा लेने के लिए अपनी तरफ़ खींचा। उसी वक्त द्वार खुला और पठानिन अन्दर आई। सकीना एक क़दम पीछे हट गयी। अमर भी जरा पीछे खिसक गया।

सहसा उसने बात बनाई--आज कहाँ चली गई थीं अम्मा? मैं यह साड़ियाँ देने आया था। तुम्हें मालूम तो होगा ही, मैं अब खद्दर बेचता हूँ।

पठानिन ने साड़ियों का जोड़ा लेने के लिए हाथ नहीं बढ़ाया। उसका सूखा, पिचका हुआ मुँह तमतमा उठा। सारी झुर्रियाँ, सारी सिकुड़ने जैसे भीतर की गर्मी से तन उठीं। गली-बुझी हुई आँखें जैसे जल उठीं। आँखें निकाल कर बोली--होश में आ छोकरे। यह साड़ियाँ ले जा अपनी बीबी-बहन को पहना, यहाँ तेरी साड़ियों के भूखे नहीं हैं। तुझे शरीफ़जादा और साफ़दिल समझकर तुझसे अपनी ग़रीबी का दुखड़ा कहती थी। यह न जानती थी, कि तू ऐसे शरीफ बाप का बेटा होकर शोहदापन करेगा। बस अब मुँह न खोलना, चुपचाप चला जा, नहीं आँख निकलवा लूंगी। तू है किस घमण्ड में? अभी एक इशारा कर दूँ, तो सारा महल्ला जमा हो जाय। हम गरीब हैं, मुसीबत के मारे हैं, रोटियों के मुहताज हैं। जानता है क्यों? इसलिए

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कर्मभूमि