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करती हो। धर्म-तत्व सब एक हैं। हजरत मुहम्मद को खुदा का रसूल मानने में मुझे कोई आपत्ति नहीं। जिस सेवा, त्याग, दया, आत्म-शुद्धि पर हिन्दू-धर्म की बुनियाद कायम है उसी पर इसलाम की बुनियाद भी कायम है। इसलाम मुझे बुद्ध और कृष्ण और राम की ताज़ीम करने से नहीं रोकता। मैं इस वक्त अपनी इच्छा से हिन्दू नहीं हूँ; बल्कि इसलिए कि हिन्दू घर में पैदा हुआ हूँ। तब भी मैं अपनी इच्छा से मुसलमान न हूँगा; बल्कि इसलिए कि सकीना की मरजी है। मेरा अपना ईमान यह है, कि मजहब आत्मा के लिए बन्धन है। मेरी अक्ल जिसे क़बूल करे, वही मेरा मजहब है बाकी सब खुराफात!' सलीम इस जवाब के लिए तैयार न था। इस जवाब ने उसे निश्शस्त्र कर दिया। ऐसे मनोद्गारों ने उसके अन्तःकरण को कभी स्पर्श न किया था। प्रेम को वह वासना मात्र समझता था। उस जरा-से उद्गार को इतना बृहद् रूप देना, उसके लिए इतनी कुरबानियाँ करना, सारी दुनिया में बदनाम होना और चारों ओर एक तहलका मचा देना, उसे पागलपन मालूम होता था।

उसने सिर हिलाकर कहा—सकीना कभी मन्जूर न करेगी।

अमर ने शान्त भाव से कहा तूम ऐसा क्यों समझते हो?

'इसलिए कि अगर उसे ज़रा भी अक्ल है, तो वह एक खानदान को कभी तबाह न करेगी।

इसके यह माने हैं, कि उसे मेरे खानदान की मुहब्बत मुझसे ज्यादा है। फिर मेरी समझ में नहीं आता कि मेरा खानदान क्यों तबाह हो जायगा। दादा को और सूखदा को दौलत मुझसे ज्यादा प्यारी है। बच्चे को तब भी मैं इसी तरह प्यार कर सकता हूँ। ज्यादा से ज्यादा इतना होगा कि मैं घर में न जाऊँगा और उनके घड़े मटके न छुऊँगा।'

सलीम ने पूछा—डाक्टर शान्तिकुमार से भी इसका जिक्र किया है?

अमर ने जैसे मित्र की मोटी अक्ल से हताश होकर कहा—नहीं मैंने उनसे जिक्र करने की जरूरत नहीं समझी। तुमसे भी सलाह लेने नहीं आया हैं; सिर्फ दिल का बोझ हलका करने के लिए। मेरा इरादा पक्का हो चुका है। अगर सकीना ने मायूस कर दिया, तो जिन्दगी का खातमा कर दूँगा; राजी हुई, तो हम दोनों चुपके से कहीं चले जायेंगे। किसी को खबर भी न

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कर्मभूमि