पड़ गयी। मुझे तो कई आदमियों ने पकड़ लिया, और यहाँ छोड़कर चल दिये।
हानी---वे मेरे ही आदमी थे। मैंने वहाँ की हालत देखी, तो आपको वहाँ से हटा देना मुनासिब समझा। मैंने उन्हे तो ताक़ीद की थी कि आपको मेरे घर पहुँचा दें।
मु॰---पहले आपके आदमी होंगे, अब नहीं हैं। ज़ियाद की तक़रीर ने उन पर भी असर किया है।
हानी---खैर, कोई मुज़ायका नहीं, मेरा मकान क़रीब है; अाइए। हम सियासत के मैदान में ज़ियाद से नीचा खा गये। उसने यह ख़बर मशहूर कर दी है कि हुसैन अा रहे हैं। इस हीले से लोग जमा हो गये, और उसे उनको फरेब देने का मौक़ा मिल गया।
मु॰---मुझे तो अब चारो तरफ़ अँधेरा ही-अँधेरा नज़र आता है।
हानी---ज़ियाद की तक़रीर ने सूरत बदल दी। जिन आदमियों ने हज़रत के पास ख़त भेजने पर ज़ोर दिया था, वे भी फ़रेब मे आ गये।
[ सुलेमान और मुख़्तार आते हैं। सुलेमान के सिर में पट्टी बँधी हुई है। ]
मुख॰---शुक्र है, आप ख़ैरियत से पहुँच गये। ज़ियाद के आदमी आपको तलाश करते फिरते है।
मु॰---हानी, ऐसी हालत में यहाँ रहकर मैं आपको खतरे में नहीं डालना चाहता। मुझे रुखसत कीजिए। रात को किसी मस्जिद में पड़ रहूँगा।
हानी---मुअाज़ अल्लाह, यह आप क्या फ़रमाते हैं! यह आपका घर है। मैं और मेरा सब कुछ हज़रत हुसैन के क़दमों पर निसार है।
[ शरीक का प्रवेश। ]
शरीक---अस्सलामअलेक या हज़रत मुस्लिम, मैं भी हुसैन के ग़ुलामों में हूँ।
हानी---हज़रत मुस्लिम, आपने शरीक का नाम सुना होगा। आप हज़रत अली के पुराने ख़ादिम हैं, और उनको शान में कई क़सीदे लिख चुके हैं।