दूसरा---हाँ, कल मुख़्तार के मकान पर बड़ा जमघट था। मक्का से कोई साहब उनके आने की खबर लाये हैं।
तीसरा---खुदा करे, जल्द आवें। किसी तरह इन ज़ालिमों से पीछा छूटे। मैंने बैयत तो यज़ीद की ले ली है, लेकिन हज़रत अायँगे, तो फ़ौरन् फिर जाऊँगा।
चौथा---लोग कहते थे, बड़े धूमधाम से आ रहे हैं। पैदल और सवार फौजें हैं। खेमे वग़ै रह ऊँटों पर लदे हुए हैं।
पहला---दूकान बढ़ाओ, हम लोग भी चलें। तक़दीर में जो कुछ बिकना था, बिक चुका। आक़बत की भी तो कुछ फ़िक्र करनी चाहिए। ( चौंककर ) अरे! ये बाजे की आवाज़ें कहाँ से आ रही है?
दूसरा---आ गये शायद।
[ सब दौड़ते हैं। ज़ियाद का जलूस सामने से आता है। ज़ियाद मिंबर पर खड़ा हो जाता है। ]
कई आवाज़ें---मुबारक हो, मुबारक हो, या हज़रत हुसैन!
ज़ियाद---दोस्तो, मैं हुसैन नहीं हूँ। हुसैन का अदना ग़ुलाम रसूल पाक के क़दमों पर निसार होनेवाला आपका नाचीज़ खादिम बिनज़ियाद हूँ।
एक आवाज़---ज़ियाद है, मलऊन ज़ियाद है।
दूसरा---गिरा दो मिंबर पर से; उतार दो मरदूद को।
तीसरा---लगा दो तीर का निशाना। ज़ालिम की ज़बान बन्द हो जाय।
चौथा---खामोश, खामोश। सुनो, क्या कहता है?
ज़ियाद---अगर आप समझते हैं कि मैं ज़ालिम हूँ, तो बेशक, मुझे तीर का निशाना बनाइए, पत्थरों से मारिए, क़त्ल कीजिए, हाजिर हूँ। ज़ालिम गर्दनज़दनी है, और जो ज़ुल्म बर्दाश्त करे, वह बेग़ैरत है। मुझे गुरूर है कि आपमें ग़ैरत है, जोश है।
कई आवाजें---सुनो-सुनो, खामोश।
ज़ियाद---हाँ, मैं ग़ैरत से, ग़ुरूर से नहीं डरता, क्योंकि यही वह ताक़त है, जो किसी कौम को ज़ालिम के हाथ से बचा सकती है। ख़ुदा के लिए