[ शैस, क़ीस, शिमर, साद और हज्जाज का प्रवेश। ]
शैस॰---अस्सलामअलेक हज़रत, आपको देखकर जिगर ठंढा हो गया।
क़ीस---अस्सलामअलेक, आपके क़दमों से हमारे वीरान घर आबाद हो गये।
हज्जाज---अस्सलामअलेक,अापको देखकर हमारे मुर्दा तन में जान आ गयी।
मु॰---( सबसे गले मिलकर ) हज़रत इमाम ने मुझे यह ख़त देकर आपकी खिदमत में भेजा है।
[ शिमर ख़त लेकर ऊँची आवाज़ से पढ़ता है, और सब लोग सिर झुकाये सुनते हैं। ]
शैस---हमारे ज़हे-नसीब, मैं तो अभी दस्तरख़्वान पर था। खबर पाते ही आपकी ज़ियारत करने दौड़ा।
हज्जाज---मैं तो अभी-अभी बसरे से लौटा हूँ, दम भी न मारने पाया था कि आपके तशरीफ़ लाने की खबर पायी। मेरे क़बीले के बहुत-से आदमी बैयत लेने को बाहर खडे हैं।
मु॰---उन्हें कल जामा मस्जिद में बुलाइए।
शिमर---वह कौन-सा दिन होगा कि मलऊन यज़ीद के जुल्म से नजात होगी।
शैस---हज़रत हुसैन ने हम गरीबों की आवाज सुन ली। अब हमारे बुरे दिन न रहेंगे।
क़ीस---हमारीकिस्मत के सितारे अब रोशन होंगे। मेरी दिली तमन्ना है कि जियाद का सिर अपने पैरों के नीचे देखूँ।
शिमर---मैंने तो मिन्नत मानी है कि मलऊन ज़ियाद के मुँह में कालिख लगाकर सारे शहर में फिराऊँ।
क़ीस---मैं तो यज़ीद की नाक काटकर उसकी हथेली पर रख देना चाहता हूँ।
[ हानी, कसीर और अशअस का प्रवेश। ]
हानी---या बिरादर हुसैन, आप पर खुदा की रहमत हो।