जुहाक---बादशाह की रियाया उसकी ज़ौजा की तरह है। ज़ौजा पर हम निसार होते हैं, उसके तलवे सुहलाते हैं, उसकी बलाएँ लेते हैं, लेकिन जब उसे किसी रक़ीब से मुख़ातिब होते देखते हैं, तो उस वक्त उसकी बलाएँ नहीं लेते। हमारी तलवार म्यान से निकल आती है, और या तो रक़ीब की गरदन पर गिरती है या बीवी की गरदन पर, या दोनो की गरदनों पर।
रूमी---बेशक, कूफ़ा को कुचल दो, कूफ़ा का कोफ़्त कर दो।
यज़ीद---कूफ़ा को कोफ्त में डाल दो। यहाँ से जाते-ही-जाते फ़ौजी कानून जारी कर दो। एक हज़ार आदमियों को तैयार रखो। जो आदमी ज़रा भी गर्म हो, उसे फ़ौरन् क़त्ल कर दो। सरदारों को एकबारगी गिरफ़्तार कर लो, फ़ौज को रोज़ाना शहर में गश्त करने का हुक्म दो, सबकी ज़बान बन्द कर दो, यहाँ तक कि कोई शायर शेर न पढ़ने पाये, मस्जिदों में खुतबे न होने पायें, मक़तबों में कोई लड़का न जाने पाये। रईसों को खूब ज़लील करो। जिल्लत सबसे बड़ी सजा है!
[ एक क़ासिद आता है। ]
शम्स---कहाँ से आते हो?
क़ासिद---ख़लीफ़ा पर मेरा सलाम हो, मुझे मक्का के अमीर ने आपकी खिदमत में यह अर्ज़ करने को भेजा है कि हुसैन का चचेरा भाई मुस्लिम कूफ़ा की तरफ रवाना हो गया है।
'यज़ीद:---कोई खत भी लाया है?
'क़ासिद---आमिल ने खत इसलिए नहीं दिया की कहीं मुझे दुश्मन गिरफ़्तार न कर लें।
यज़ीद---जियाद, तुम इसी वक्त कूफ़ा चले जाओ। तुम्हें मेरे सबसे तेज़ घोड़े को ले जाने का अख्तियार है। अगर मेरा क़ाबू होता, तो तुम्हें हवा के घोड़े पर सवार करता।
जिय़ाद---ख़लीफ़ा पर मेरी जान निसार हो, मुझे इस मुहिम पर जाने से मुआफ़ रखिए। जुहाक या शम्स को तैनात फ़रमाएँ।
यज़ीद---इसके मानी यह हैं कि मैं अपनी एक आँख फोड़ लूँ।
रूमी---आखिर तुम क्या चाहते हो?