पर दग़ा का शक न करते। अगर मैं यज़ीद का दोस्त होता, तो अब तक दौलत से मालामाल हो जाता। अगर खुद बैयत की नीयत रखता, तो अब तक खामोश न बैठा रहता। आप मुझ पर यह शुबहा करके बड़ा सितम कर रहे हैं।
हुसैन---अब्बास, मुझे तुम्हारी बातें सुनकर बड़ी शर्म आती है। जुबेर सबसे अलग-बिलग रहते हैं। किसी के बीच में नहीं पड़ते। एकान्त में बैठनेवाले आदमियों पर अक्सर लोग शुबहा करने लगते हैं। तुम्हें शायद यह नहीं मालूम है कि दग़ा गोशे से सोहबत को कहीं ज़्यादा पसन्द करती है।
[ हबीब का प्रवेश ]
हबीब---या हज़रत, मुझे अभी मालूम हुआ कि आपके यहाँ तशरीफ़ लाने की खबर यज़ीद के पास भेज दी गयी है,और मरवान यहाँ का नाज़िम बनाकर भेजा जा रहा है।
हुसैन---मालूम होता है, मरवान हमारी जान लेकर ही छोड़ेगा। शायद हम ज़मीन के परदे में चले जाएँ, तो वहाँ भी हमें आराम न लेने देगा।
अब्बास---यहाँ उसे उसकी शामत ला रही है। कलाम पाक की क़सम, वह यहाँ से जान सलामत न ले जायगा। काबा में खून बहाना हराम ही क्यों न हो, पर ऐसे रूह-स्याह का खून यहाँ भी हलाल है।
हबीब---वलीद माजूल कर दिया गया। यहाँ का आलिम मदीने जा रहा है।
हुसैन---वलीद के माजूली का मुझे सख़्त अफसोस है। वह इस्लाम का सच्चा दोस्त था। मैं पहले ही समझ गया था कि ऐसे नेक और दीनदार आदमी के लिए यज़ीद के दरबार में जगह नहीं है। अब्बास, वलीद की माजूली मेरी शहादत की दलील है।
हबीब---यह भी सुना गया है कि यज़ीद ने अपने बेटे को, जो आपका खैरख़्वाह है, नज़रबन्द कर दिया है। उसने खुल्लमखुल्ला यज़ीद की बेइन्साफी का एतराज किया था। यहाँ तक कहा था कि ख़िलाफ़त पर तुम्हारा कोई हक नहीं है। यज़ीद यह सुनकर आगबबूला हो गया। उसे क़त्ल करना चाहता था, लेकिन रूमी ने बचा लिया।